भगवत् कृपा हि केवलम् !

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Monday 31 October 2011

प्रेम विवाह वक्त की जरूरत ...??

दो दशक पहले आधुनिकता की बयार से अछूते भारत के हालात वर्तमान परिदृश्य से पूरी तरह भिन्न थे. बदलती सामाजिक और आर्थिक परिस्थितियों ने पारिवारिक मान्यताओं को भी महत्वपूर्ण ढंग से परिवर्तित किया है. विशेषकर विवाह जैसी संस्था (जो भारतीय समाज में अपना एक विशिष्ट स्थान रखती है) से जुड़े रीति-रिवाजों और परंपराओं में हम कई तरह के परिवर्तन देख सकते हैं. भारत के संदर्भ में विवाह का अर्थ है एक ऐसा संबंध जो ना सिर्फ पति-पत्नी को आपस में जोड़े रखे, बल्कि दो परिवारों को भी इस तरह एक सूत्र में पिरो कर रखे कि वे एक-दूसरे के सुख-दुख सांझा करने के लिए प्रेरित हों. इसीलिए हमारे बड़े-बुजुर्गों का यह मानना था कि जब विवाह के बाद दो परिवारों को आजीवन एक-दूसरे के साथ संबंध बनाए रखना हो तो जरूरी है कि दोनों में कुछ मूलभूत समानताएं हो, जैसे सामाजिक स्थिति और जाति. उस समय लड़के-लड़की को आपस में मिलने की अनुमति थी ही नहीं इसीलिए परिवार ही स्वयं अपनी समझ से उनके जीवन का यह सबसे बड़ा निर्णय कर लेता था.

लेकिन अब परिस्थितियां पूरी तरह बदल चुकी हैं. पहले जहां लड़कियों को लड़कों से मिलने तक की मनाही थी, वहीं आज वह उनके साथ स्कूल-कॉलेज में पढ़ती हैं और एक ही ऑफिस में काम करती हैं, जिसकी वजह से उनमें मेल-जोल की संभावना अत्याधिक बढ़ गई है. इस कारण उनमें भावनात्मक लगाव पैदा हो जाता है जो आगे चलकर प्रेम जैसे मनोभावों में विकसित हो जाता है. वह आपस में एक-दूसरे को जांचने-परखने के बाद विवाह करने का निर्णय कर लेते हैं. भले ही हमारे समाज के कुछ रुढ़िवादी लोग उनके इस कदम की भरपूर आलोचना करें, या उन पर कितने ही ताने कसें लेकिन बदलते समय के साथ-साथ प्रेम विवाह वर्तमान समय की जरूरत बन गया है.

पहले की अपेक्षा आज के युवा अधिक आत्मनिर्भर और शिक्षित हैं. वह अपनी आवश्यकताओं और अपेक्षाओं को अपने अभिभावकों से ज्यादा अच्छी तरह समझते हैं. आमतौर पर यह भी देखा जाता है कि भारत के युवाओं की मानसिकता परिवार के बाकी सदस्यों की अपेक्षा पूरी तरह आधुनिक हो चुकी है. इसीलिए वह विवाह संबंधी अपनी प्राथमिकताओं में कहीं भी समान जाति और धर्म को महत्व नहीं देते. वे अपने जीवन साथी के रूप में एक ऐसे दोस्त की तलाश करते हैं जिससे वह अपनी सभी बातें शेयर कर सकें और जो उनकी भावनाओं को समझने के साथ उनका सम्मान भी करे. आजकल जब महिला और पुरुष दोनों ही समान रूप से अपने कॅरियर के लिए सजग हैं तो वह यह भी अपेक्षा रखते हैं कि उनका जीवन साथी उनके काम और ऑफिस की परेशानियों को समझ उनके साथ सहयोग करेगा.

पहले जहां उनके माता-पिता अपनी परंपराओं की दुहाई देते हुए युवक-युवती से बिना पूछे और उन्हें एक-दूसरे को जानने का मौका दिए बगैर विवाह करने का आदेश दे देते थे, वहीं आज के युवा ऐसे जटिल रिवाजों को नहीं बल्कि परिपक्वता और व्यवहारिकता को महत्व देते हैं. इसीलिए वह अपनी कुछ मूलभूत अपेक्षाओं को ध्यान में रखते हुए एक ऐसे व्यक्ति से विवाह करना चाहते हैं जिसे वह पहले से ही जानते और समझते हों और जिसके स्वभाव और आदतों से वह भली-भांति अवगत हों ताकि उनके वैवाहिक जीवन में एक-दूसरे के प्रति प्रेम और सम्मान बरकरार रहे. वह अपनी प्रसन्नता और आपसी सहमति के साथ उसका निर्वाह करें ना कि उसे सिर्फ पारिवारिक और सामाजिक बंधन समझें.

परंपरागत विवाह में पति-पत्नी विवाह के बाद एक-दूसरे को समझना शुरू करते हैं और इसी दौरान अगर कहीं उन्हें ऐसा प्रतीत होने लगे कि जिस व्यक्ति से उन्होंने विवाह किया है, उसके साथ वह किसी भी प्रकार का तालमेल नहीं बैठा पा रहे हैं या उनके जीवन साथी की आदतें और स्वभाव उनके लिए सही नहीं हैं, तो ऐसे में उनके पास किसी तरह संबंध को बनाए रखने के अलावा और कोई विकल्प नहीं रह जाता. वह स्वयं को सामाजिक बंधनों में जकड़ा हुआ पाते हैं. अपनी खुशियों और आकांक्षाओं को भूल वह जैसे-तैसे अपने संबंध का गुजारा कर रहे होते हैं.

इसके विपरीत प्रेम-विवाह में ऐसे हालातों की गुंजाइश बहुत कम हो जाती है क्योंकि विवाह करने वाले लोग एक-दूसरे को पहले से ही समझते हैं. एक-दूसरे के स्वभाव और आदतों को भी वह अच्छी तरह जानते हैं, ऐसे मे उनमें मनमुटाव पैदा होने की संभावना ना के बराबर रह जाती है. उन दोनों में औपचारिकता जैसी भावना भी पूरी तरह समाप्त हो जाती है जिसकी वजह से उनका वैवाहिक संबंध अपेक्षाकृत अधिक सहज और खुशहाल बन पड़ता है.

हालांकि प्रेम-विवाह में भी थोड़ी-बहुत मुश्किलें आती हैं क्योंकि विवाह के संबंध में बंधने के बाद स्वाभाविक तौर पर व्यक्तियों के उत्तरदायित्वों का दायरा बढ़ जाता है. प्रेमी जब पति-पत्नी बन जाते हैं तो उन पर एक-दूसरे की जिम्मेदारियों के अलावा परिवार की जिम्मेदारियां भी होती हैं, जो उन्हें अपनी प्राथमिकताओं को परिवर्तित करने के लिए विवश कर देती हैं. इसकी वजह से कई बार ऐसे हालात भी पैदा हो जाते हैं जिनके कारण एक-दूसरे से बेहद प्रेम करने वाले व्यक्तियों के बीच मतभेद या मनमुटाव पैदा हो जाते हैं. लेकिन इनका निपटारा करना भी ज्यादा मुश्किल नहीं होता क्योंकि वे दोनों अपेक्षाकृत अधिक परिपक्व और एक दूसरे से भावनात्मक रूप से काफी हद तक जुड़े होते हैं. एक-दूसरे की परेशानियों को समझ वह खुद को परिस्थिति के अनुरूप ढाल लेते हैं. लेकिन अगर परंपरागत विवाह में ऐसी परिस्थितियां पैदा हो जाती हैं तो कई बार पति-पत्नी के बीच सुलह कराने के लिए परिवार को दखल देना पड़ता है.

हमारा समाज जो आज भी प्रेम-विवाह को गलत मानता है, उसे यह समझना होगा कि विवाह दो परिवारों की साख और उनकी सामाजिक प्रतिष्ठा से कहीं ज्यादा दो लोगों के व्यक्तिगत जीवन से संबंधित है. इसीलिए अगर परिवार के युवा परिपक्व और समझदार हैं, वह जानते हैं कि उनके लिए क्या सही रहेगा तो हमें केवल अपनी परंपराओं का हवाला देते हुए उनकी भावनाओं को आहत नहीं करना चाहिए. अब समय पहले जैसा नहीं रहा. आज के युवा स्वतंत्र और आत्मनिर्भर हैं. समय बदलने के साथ-साथ उनकी प्राथमिकताएं और जरूरतें भी परिवर्तित हुई हैं. इसीलिए उनकी खुशी और बेहतर भविष्य के लिए जरूरी है कि विवाह के लिए केवल परंपराओं और मान्यताओं को ही आधार ना बनाया जाए बल्कि अपनी मानसिकता का दायरा बढ़ा कर परिपक्वता और व्यवहारिकता को महत्व दिया जाए.

आप क्या सोचते है ? आपके विचार आमंत्रित है - अजय 

  

11 comments:

vandana gupta said...

आपने बहुत सुन्दर विश्लेषण किया है मगर दोनो तरह के विवाह मे दोनो ही तरह की स्थितियाँ आती रहती हैं आजकल ये भी देखने को मिलता है इसलिये किसी एक को ही सही नही ठहराया जा सकता…………हाँ इतना है कि जो शुरु मे वक्त लगताअ है एक दूसरे को समझने मे वो वक्त इसमे नही लगता मगर जहाँ तक सामन्जस्य बैठाने की बात है तो दोनो को ही करना पडता है और दोनो ही तरह के विवाह मे और सिर्फ़ प्रेम विवाह ही ज्यादा सफ़लता की गारंटी हो ये भी नही कहा जा सकता और सिर्फ़ पारंपरिक विवाह गारंटी है ये भी नही कहा जा सकता सब वक्त हालात और परिस्थितियो पर निर्भर करता है।

vandana gupta said...

आपने बहुत सुन्दर विश्लेषण किया है मगर दोनो तरह के विवाह मे दोनो ही तरह की स्थितियाँ आती रहती हैं आजकल ये भी देखने को मिलता है इसलिये किसी एक को ही सही नही ठहराया जा सकता…………हाँ इतना है कि जो शुरु मे वक्त लगताअ है एक दूसरे को समझने मे वो वक्त इसमे नही लगता मगर जहाँ तक सामन्जस्य बैठाने की बात है तो दोनो को ही करना पडता है और दोनो ही तरह के विवाह मे और सिर्फ़ प्रेम विवाह ही ज्यादा सफ़लता की गारंटी हो ये भी नही कहा जा सकता और सिर्फ़ पारंपरिक विवाह गारंटी है ये भी नही कहा जा सकता सब वक्त हालात और परिस्थितियो पर निर्भर करता है।

अजय कुमार दूबे said...

जी वंदना जी आपने सही कहा ...... दोनो तरह के विवाह मे दोनो ही तरह की स्थितियाँ आती रहती हैं आजकल ये भी देखने को मिलता है इसलिये किसी एक को ही सही नही ठहराया जा सकता....

पर मेरा मतलब दोनों तरह के विवाह में तुलना नहीं था बल्कि मेरा मानना है की हमे बदलते वक़्त में प्रेम विवाह को भी स्वीकार करना चाहिए ....कमियां तो प्रेम विवाह में भी है,(खासकर जब वो अपरिपक्वता के समय हो तो )
मेरा तो मानना है कि विवाह के लिए केवल परंपराओं और मान्यताओं को ही आधार ना बनाया जाए बल्कि अपनी मानसिकता का दायरा बढ़ा कर परिपक्वता और व्यवहारिकता को महत्व दिया जाए.

आपका मेरे ब्लॉग पे पधारने के लिए आभार

Anonymous said...

अजय जी आपका लेख प्रेम विवाह के समर्थन में है ....क्या बात है

सुधीर सिंह ..कानपूर से

Pallavi saxena said...

aapki baaton se sahamat bhi hoon aur asahamt bhi .... yh zaruri nahi ki prem vivaha ke antargat hee aap ek dusre ki bhavnao ko samajh sakte hain aur unhen samajhte hue aage badh sakte hai arange marriage men bhi yh samabhav hai

अजय कुमार दूबे said...

पल्लवी जी ..... मै अरेंज मैरेज के विल्कुल खिलाफ नहीं हु .....मै तो कह रहा हु कि हमें एकदम से प्रेम विवाह का सिर्फ विरोध ही नहीं करना चाहिए .बल्कि जहा सही हो वहा तो समर्थन करना चाहिए

chandra prakash Sharma said...
This comment has been removed by the author.
chandra prakash Sharma said...

Indians do arrange marriage. Most of marriages in India is arranges as compared to love marriage. Arrange marriage is more stable then love marriage. Probable reason because family pressure in arrange marriage to resolve any dispute. If any dispute happen between husband and wife then both family seniors sit and talk. This is big reason for so, called stable family relationship for divorce in India. This arrange marriage is good to raise their childrens as compared to other countries. Where peoples marry in morning and divorce in evening like changing their clothes.

But past few decades love marriage increased a lot in urban India. Hence diverse rate also increased in India. Most love marriages are unsuccessful in India. not in India every where in the world.
As u know Mr. Ajay most of the developed country (like United States,Sweden,Russia,United Kingdom,Germany etc.) follow the love marriage; are u know the divorce rate of these country??????
if no so plz concentrate on these data-
country - divorce rate
Sweden – 54.9%
United States – 54.8%
Russia – 43.3%
United Kingdom – 42.6
Germany – 39.4%
but the divorce rate in India is 1.1%.
so why are you support the love marriage????????????????????????
plz reply.

Narendra said...

अजय जी

क्या बात है ...आप प्रेम विवाह का बड़ी चतुराई से समर्थन कर रहे है ..... कही आपका इरादा भी ....
मजाक कर रहा हु दोस्त
वैसे आपके तर्क अपने जगह ठीक है . पर परिपक्वता और आत्मनिर्भरता जैसा शब्द सबको समझ में कहा आता है ....

पहली नज़र में आपका लेख प्रेम विवाह के पक्ष में लगता है ... पर वास्तव में आपने सही लिखा है .
"खुशी और बेहतर भविष्य के लिए जरूरी है कि विवाह के लिए केवल परंपराओं और मान्यताओं को ही आधार ना बनाया जाए बल्कि अपनी मानसिकता का दायरा बढ़ा कर परिपक्वता और व्यवहारिकता को महत्व दिया जाए."

देखा जाये तो आपने परम्परागत विवाह को और बेहतर बनाने के तरफ ध्यान दिलाया है .... अगर प्रेम विवाह के कुछ अच्छे पेहलू को परम्परागत विवाह में शामिल कर लिया जाये तो परम्परागत विवाह के मायेने वास्तव में और भी शानदार हो जाते

इस जबरजस्त लेखनी के लिए... धन्यबाद

Narendra said...

अजय जी एक बंधू आपके लेख को "तलाक" के पैमाने से देख रहे है सिर्फ ....

Mr. chandra

आप अपने comment लिखने से पहले लेख तो अच्छी तरह से पढ़ लेते

ये लेख प्रेम विवाह को बढ़ावा देने वाला नहीं है .... बल्कि परम्परागत विवाह को मजबूत करने के पक्ष में है

दूसरी बात .... अजय जी ने उस प्रेम विवाह का समर्थन किया है जो परिपक्वता और आत्मनिर्भरता युक्त हो ....... दुसरे शब्दों में अजय जी ने सबके मामले प्रेम विवाह का समर्थन नहीं किया है यानी प्रेम विवाह की योग्यता भी परिभाषित किया है .... और परम्परागत विवाह में ...... परिपक्वता और एक दुसरे को मिलने या समझने का मौका देने का का महत्वपूर्ण सुझाव दिया है ताकि ..... आपके तलाक वाले पैमाने भी सही काम करे .....

पश्चिमी सभ्यता का तो भारत में होने वाले किसी भी प्रकार के विवाह से कोई मेल नहीं है ...... इसलिए तलाक जैसे शब्द के आधार पे न सोचिये

बाकि आप समझदार है ही ..... सकारात्मक नजरिया विकसित करिए ..... thanks

अजय कुमार दूबे said...

धन्यबाद नरेन्द्र ..... गहनता पूर्वक लेख पढने के लिए

नहीं मित्र मेरा इरादा .....तो सिर्फ परम्परागत विवाह में सुधार को लेके है ताकि ... आज के युवा में परम्परागत विवाह की रूचि फिर से बढे .

मै तो परिवर्तनशीलता का समर्थक हु .... कुछ मुलभुत सुधारो के जरिये हम लोग अरेंज मैरेज को बदले ज़माने की भी जरुरत बनाये रख सकते है .

@चंद्रप्रकाश

भाई मेरे ब्लॉग में पधारने के लिए धन्यबाद तुम मेरे छोटे भाई हो ...
नरेन्द्र की बातो को अन्यथा न लेना ..... इनकी हिंदी काफी अच्छी है और ये मेरे बहुत अछे मित्रो में से है आजकल मेलबोर्न में है ....

एक बार फिर से आप दोनों को धन्यबाद