भगवत् कृपा हि केवलम् !

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Saturday 2 July 2011

कांग्रेस - बीजेपी के बीच फर्क ........??

" कांग्रेस में कोई नितिन गडकरी भी हो सकता है, इसमें मुझे संदेह है। मनमोहन सिंह को मैं अपवाद मानता हूं। मैं तब कांग्रेस को दाद दूंगा, जब राहुल के होते हुए पार्टी अगले चुनाव में किसी और नेता को प्रधानमंत्री के रूप में प्रोजेक्ट करे..."

यह सवाल हमेशा ही उठता है कि कांग्रेस और बीजेपी में बेहतर कौन है?? जवाब देना हमेशा ही मुश्किल होता है। कांग्रेस आजादी की लड़ाई से निकली पार्टी है। आजादी के बाद राष्ट्र के निर्माण में उसकी भूमिका है। जवाहरलाल नेहरू की सेकुलर-डेमोक्रेटिक-पॉलिटिक्स ने इस देश को पाकिस्तान बनने से बचा लिया। बीजेपी यह दावा नहीं कर सकती। आजादी की लड़ाई के समय तो बीजेपी थी ही नहीं। आरएसएस था। गांधीजी की हत्या के बाद लगे प्रतिबंध से आरएसएस को राजनीतिक दल का महत्व समझ में आया और जनसंघ का उदय हुआ। श्यामा प्रसाद मुखर्जी और उनके बाद दीन दयाल उपाध्याय ने पार्टी की बागडोर संभाली। हिंदूवाद में लिपटा उग्र-राष्ट्रवाद जनसंघ की पहचान बना। कैडर आधारित पार्टी होने के बाद भी उसका जनाधार सीमित था। इमरजेंसी ने जनसंघ को देश की राजनीति के केंद्र में लाने में मदद की। लेकिन बीजेपी का असल उभार दिखा अयोध्या आंदोलन के समय। बोफोर्स की मार, मंडल और मंदिर पर साफ स्टैंड न लेने की विवशता और लचर नेतृत्व ने कांग्रेस को केंद्र की सत्ता से दूर कर दिया और बीजेपी पहली बार केंद्र में सरकार बनाने में कामयाब हुई। इसके बाद से ही देश में दो ध्रुवीय राजनीति की शुरु आत हुई। एक ध्रुव की अगुवाई कांग्रेस के पास और दूसरे की बीजेपी के हवाले। लेकिन नई आर्थिक नीति ने दोनों प्रमुख पार्टियों के बीच की वैचारिक दूरी को काफी कम कर दिया है। आज बीजेपी और कांग्रेस में कोई खास फर्क नहीं दिखता। न उनके नेताओं के आचरण में और न ही पॉलिसी के स्तर पर। वरना एक जमाना था, कांग्रेस समाजवाद का डंका पीटा करती थी और निर्गुट आंदोलन की अगुवा होने के बावजूद वह सोवियत संघ के काफी नजदीक थी। जनसंघ या बीजेपी को तब आर्थिक रूप से खुले बाजारवाद का समर्थक बताया जाता था और वह अमेरिका से करीबी संबंध की वकालत करती थी। समाजवाद के खात्मे के साथ ही कांग्रेस भी आर्थिक उदारवाद की गोद में बैठ गई। मनमोहन सिंह के सौजन्य से देश में बाजारवाद की बयार बहने लगी। आरएसएस के तमाम स्वदेशी आंदोलन के बावजूद अटल बिहारी वाजपेयी के छह साल के शासन में देश उदारीकरण के रास्ते से जरा भी नहीं भटका। कभी-कभी तो यह लगता था कि कांग्रेस भी अगर 1998 से 2004 तक केंद्र में रहती, तो आर्थिक नीतियों में कोई नई चीज नहीं देखने को मिलती।

कांग्रेस-बीजेपी के बीच आम आदमी...........

गौर से देखा जाए, तो सेकुलरिज्म के अलावा सिर्फ एक अंतर दोनों में नजर आता है। बीजेपी कांग्रेस की तुलना में ज्यादा लोकतांत्रिक पार्टी दिखती है। नेहरू-गांधी की विरासत की वजह से कांग्रेस में जिस तरह का अंदरूनी लोकतंत्र होना चाहिए, उसमें इसकी कमी साफ झलकती है। आजादी के 63 साल बाद भी पार्टी नेहरू-गांधी की मोहताज है। सोनिया गांधी ने पार्टी की बागडोर नहीं संभाली होती, तो शायद कांग्रेस का आज कोई नामलेवा भी नहीं होता। नरसिंह राव और सीताराम केसरी ने पार्टी का कबाड़ा ही कर दिया था और पार्टी इस हद तक कमजोर हुई कि आज तक केंद्र में अकेले अपने बल पर सरकार बनाने की नहीं सोच सकती। सोनिया पर निर्भरता ने पार्टी की केंद्र में वापसी में मदद तो की, लेकिन उसे हमेशा के लिए पंगु भी कर दिया। तमाम बड़े नेताओं के बाद भी पार्टी राहुल गांधी में अपना अगला नेता और प्रधानमंत्री देखने के लिए अभिशप्त है। पार्टी में आंतरिक चुनाव पूरी तरह से समाप्त हो गए हैं। एक वक्त था, जब कांग्रेस कार्यकारिणी के सदस्य खुले चुनाव के जरिए चुनकर आते थे, आज यह परंपरा खत्म हो गई है। कार्यकारिणी के लिए नेता इलेक्ट नहीं, सेलेक्ट होते हैं। मुख्यमंत्री का चुनाव विधायक नहीं, आलाकमान करता है। बीजेपी इस मामले में अभी तक अपने को खुशनसीब मान सकती है। पार्टी एक परिवार के सहारे नहीं है। वहां कोई भी आम कार्यकर्ता पार्टी का अध्यक्ष बनने का ख्वाब पाल सकता है और देश का प्रधानमंत्री भी बन सकता है। उसके यहां किसी एक नेता का आदेश नहीं चलता। वरिष्ठ नेता मिल-बैठकर फैसले करते हैं। लालकृष्ण आडवाणी जैसे वरिष्ठ नेता को भी, भले ही आरएसएस के दबाव में ही सही, पार्टी अध्यक्ष और नेता विपक्ष का पद छोड़ना पड़ता है। पार्टी में पले-बढ़े अरुण जेटली और सुषमा स्वराज जैसे लोग प्रधानमंत्री बनने का सपना देख सकते हैं। इसके लिए उन्हें अपनी काबिलियत साबित करनी होगी। राहुल गांधी की तरह परिवार में जन्म लेना वहां एक मात्र योग्यता नहीं है। मैं यह कहने की गुस्ताखी कर सकता हूं कि कांग्रेस में कोई नितिन गडकरी भी हो सकता है, इसमें मुझे संदेह है। मनमोहन सिंह को मैं अपवाद मानता हूं। मैं तब कांग्रेस को दाद दूंगा, जब राहुल के होते हुए पार्टी अगले चुनाव में किसी और नेता को प्रधानमंत्री के रूप में प्रोजेक्ट करे। कहने वाले यह कह सकते हैं कि बीजेपी में आरएसएस के इशारे के बगैर पत्ता भी नहीं हिलता। लेकिन आरएसएस अपनी तमाम खामियों के बावजूद पार्टी के रोजमर्रा के काम में दखल नहीं देता जबकि कांग्रेस में रोजमर्रा के फैसले भी नेहरू-गांधी परिवार के इशारे के बगैर नहीं हो सकते।

आपके विचार आमंत्रित है -- अजय 

12 comments:

अजय कुमार दूबे said...

मित्रो भारत का भविष्य इन दोनों पार्टियों के ही हाथ है , ऐसे में हमे दोनों को अच्छी तरह से समझना चाहिए

दिवस said...

पहली बात तो मनमोहन सिंह को ईमानदार कहना गलत होगा| क्योंकि यदि वह ईमानदार है तो उससे बड़ा मुर्ख कोई नहीं होगा|
दूसरी बात राहुल गांधी जैसा भौंदू व्यक्ति हमे प्रधानमन्त्री के रूप में स्वीकार नहीं है|
तीसरी बात भाजपा, कांग्रेस से तो कहीं बेहतर है|
चौथी बात जवाहर लाल नेहरु ने भारत को पाकिस्तान बनने से नहीं बचाया, यह शुभ कार्य तो सरदार पटेल ने किया था| नेहरु ने तो भारत के दो टुकड़े कर पाकिस्तान जैसा देश दुनिया के नक़्शे में बनाया|
पांचवी बात बोफोर्स घोटाले में भाजपा का हाथ होने की बात कहना बेमानी है| यह पूरी तरह से सिद्ध हो चूका है कि यह काम राजिव गांधी ने किया था क्वात्रोची की सहायता से|
छठी बात भाजपा की तरफ से मोदी जी ही जनता की सबसे बड़ी पसंद हैं प्रधान मंत्री के लिए|
सातवीं बात आरएसएस में कोई खामी नहीं है|

अजित गुप्ता का कोना said...

एक बात सभी को समझना चाहिए कि कांग्रेस और बीजेपी में क्‍या मूल अन्‍तर है। कांग्रेस का चिन्‍तन व्‍यक्तिवादी है, वहाँ व्‍यक्ति को प्रमुखता है इसके विपरीत बीजेपी संगठनवादी है, यहाँ संगठन को प्रमुखता है। कांग्रेस स्‍वयं को धर्मनिरपेक्ष घोषित करती है लेकिन मुस्लिम और ईसाई तुष्‍टीकरण में संलग्‍न रहकर हिन्‍दू हित की विरोधी है। भाजपा हिन्‍दू हित की बात करते हुए भी मुस्लिम और ईसाई हित का भी ध्‍यान रखती है। कांग्रेस भारत को एक समाज नहीं मानती है इसलिए राष्‍ट्रवाद को स्‍वीकार नहीं करती जबकि भाजपा भारत के सम्‍पूर्ण नागरिकों को एक भारतीय समाज मानती है इसलिए एक समाज के लिए एक राष्‍ट्र की कल्‍पना को राष्‍ट्रवाद कहती है। कांग्रेस भारत में अनेक संस्‍कृति की बात करती है जबकि भाजपा एक संस्‍कृति की बात करती है। ऐसे कितने ही मूल भूत अन्‍तर है जिन्‍हें समाज को समझना चाहिए।

Deepak Saini said...

चोर तो दोनों पार्टियों में है

Anonymous said...

shundar khojbin dhanyabaad

Anonymous said...

अजयजी सच कहा आपने बीजेपी काग्रेस से ज्यादा लोकतांत्रिक है ........

सुधीर सिंह

पार्थ रावत said...

सभी कांग्रेसियों का पहला लक्षण राहुल सोनिया का चापलूसी करना है .

पार्थ रावत said...

जो पार्टी चापलूसों और चमचो से भरी हो वो बेहतर कैसे हो सकती है देश के लिए .

अजय जी काफी दिनों बाद आपने ये पोस्ट लिखा ......आपके पोस्ट का इंतजार था

धन्यबाद

सपना सिंह said...

कोंग्रेस में परिवारवाद हावी है . जो लोकतंत्र के लिए खतरनाक है

प्रीती मिश्रा said...

सही बात ........आचरण तो दोनों पार्टियों के नेताओ की एक जैसी ही है

प्रीती मिश्रा said...

बस हमे तो ये देखना है कौन कम ख़राब है , वरना ख़राब तो दोनों ही पार्टी है

Anonymous said...

chor chor mausere bhai.....aachran to milega hi sir ji

raja