भगवत् कृपा हि केवलम् !

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Saturday 4 June 2011

बाबा रामदेव जी का सत्याग्रह ! भारत के पुनरुत्थान का शंखनाद ........

मित्रो आज से योगगुरु बाबा रामदेव जी ने दिल्ली के रामलीला मैदान में अनिश्चितकालीन आमरण अनशन 'सत्याग्रह' शुरू करके भारत के पुनरुत्थान (नवनिर्माण) का शंखनाद कर दिया है। हम बाबा जी के इस महान यज्ञ के सफलता के लिए परमपिता परमेश्वर से प्रार्थना करते है।
अभी कुछ दिन पहले ही अन्ना भाऊ ने निद्रा में लीन सरकार को झकझोरा था पर अन्ना के ही अनुसार 'सरकार ने उन्हे धोखा ही दिया है अबतक और सरकार का एक कमजोर लोकपाल बनाने का इरादा है' ठीक ही कहा गया है किसी को निद्रा से जगाना तो आसान है परन्तु जानबूझकर निद्रा का ढोंग करने वाले को कौन जगा सकता है। साथ ही अन्नाजी द्वारा भी कई मामलो में वेवजह की गयी बयानबाजी भी सरकार के पक्ष में रही, हालाँकि इसमे कोई शक नहीं की अन्ना भाऊ एक नेक और सच्चे देशभक्त इंसान है।
बाबा की ललकार!!योजनावद्ध तैयारी का परिणाम....
सफलता के लिए हिम्मत, योजना, लगन, सत्यनिष्ठा, अनुशासन, दृढ़ता और सजगता बहुत ही आवश्यक होता है, इन गुणों के बगैर कोई योगी कैसे हो सकता है ये सभी गुण अपने आप में योग ही तो है। बाबा जी तो है ही योगगुरु , रामदेव जी ने पिछले ५-६ वर्षो से अपने हर योग शिविर एवं सार्वजनिक मंचो से बहुत सारे ज्वलंत मुद्दे उठाते रहे साथ ही उस पे अपने मत भी रखने लगे, और पिछले २-३ वर्षो से तो इसके सार्थक समाधान के लिए भी आगे आते रहे है। बाबा ने २००९ में पहले भारत स्वाभिमान आन्दोलन की स्थापना किया और फिर भारत स्वाभिमान यात्रा के अंतर्गत पिछले वर्ष से सम्पूर्ण भारत की यात्रा पे निकले और जन जन में भ्रष्टाचार के विरुद्ध खड़े होने एवं ब्यवस्था परिवर्तन करने की जागृति ला रहे थे। इसी योजना के तहत बाबा ने ये घोषणा की थी कि २५ मई २०११ को सम्पूर्ण भारत कि यात्रा पूरी करने के बाद अगर जरुरत पड़ी तो (सरकार मांगो को नहीं मानेगी तो) महाराणा प्रताप के जन्मदिवस ४ जून २०११ से अनिश्चित काल के लिए सत्याग्रह करेंगे सच तो यह है कि उन्होंने ज्वलंत मुद्दों को सामने लाने का प्रयास किया है। यदि सरकार इस दिशा पर पहले ही ध्यान देती और उसकी नीयत साफ होती, तो यह नौबत ही नहीं आती। पर सरकार की नीयत में खोट है, निश्चित रूप से यह सोचने वाली बात है कि अन्ना हजारे और बाबा रामदेव जैसे लोग सरकार को बता रहे हैं कि उसे क्या करना चाहिए। बाबा के शंखनाद ने सरकार के होश उड़ा दिए है, आजाद भारत में इस तरह के ज्यादा उदाहरण नहीं मिल पाएंगे कि किसी चुनी हुई सरकार ने किसी आंदोलनकारी नेता के समक्ष इस तरह सार्वजनिक रूप से शीर्षासन किया हो वो भी आन्दोलन शुरू होने से पहले ही 
नैतिक बल का पर्याय है, बाबा का हठयोग..... 
कानून व व्यवस्था में अमूलचूल बदलाव के लिए बाबा का हठयोग इसलिए दृढ़ संकल्प का पर्याय बन रहा है, क्योंकि उनके साथ नैतिकता और ईमानदारी का बल भी है। वैसे भी हठी और जिद्दी लोग ही कुछ नया करने और अपने लक्ष्य को हासिल करने की ताकत रखते हैं। बाबा को व्यापारी कहकर उनकी भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम पर हमला बोला जा रहा है। लेकिन यहां गौरतलब है कि बाबा ने योग और आयुर्वेद दवाओं से पहले पैसा कमाया और वे यह धन देश की राजनीति और नौकरशाही का शुध्दीकरण कर उसे पुनर्जन्म देने की कोशिशों में लगा रहे हैं तो इसमें खोट कहां है ? हमारे विधायक, सांसद और मंत्री तो सत्ता हासिल करने के बाद भ्रष्ट आचरण से पैसा कमाते हैं और फिर लोक छवि बनी रहे यह प्रदर्शित करने के लिए व्यापार की ओट लेते हैं। ये काम भी ऐसे करते हैं जो गोरखधंधों और प्राकृतिक संपदा की अंधाधुंध लूट से जुड़े होते हैं। बाबा ईमानदारी से आय और विक्रयकर भी जमा करते हैं। यदि वे ऐसा नहीं कर रहे होते तो उन्हें अब तक आयकर के घेरे में ले लिया गया होता अथवा सीबीआई ने उनके गले में आर्थिक अपराध का फंदा डाल दिया होता। बाबा ने व्यापार करते हुए जनता से रिश्ता मजबूत किया, जबकि हमारे जनप्रतिनिधि निर्वाचित होने के बाद आम आदमी से दूरी बढ़ाने लगते हैं। इन्हीं कारणों के चलते बदलाव की आंधी जोर पकड़ रही है और देश की जनता अन्ना हजारे व बाबा रामदेव जैसे निश्चल व ईमानदार गैर राजनीतिक शख्सियतों में नायकत्व खोज उनकी ओर आकर्षित हो रही है।
अन्ना हजारे के बाद बाबा के अनशन से परेशान केंद्र सरकार के प्रकट हालातों ने तय कर दिया है कि देश मे नागरिक समाज की ताकत मजबूत हो रही है। इससे यह भी साबित होता है कि जनता का राजनीतिक नेतृत्वों से भरोसा उठता जा रहा है। विपक्षी नेतृत्व पर भी जनता को भरोसा नहीं है। अलबत्ता अन्ना और बाबा के भ्रष्टाचार से छुटकारे से जुड़े एसे आंदोलन ऐसे अवसर हैं, जिन्हें बिहार, ओडीसा, बंगाल और तमिलनाडू की सरकारें सामने आके अपना समर्थन दे सकती थीं। भ्रष्टाचार के मुद्देपर वामपंथ को भी इन ईमानदार पहलों का समर्थन करना चाहिए। लेकिन बंगाल की हार के बाद वे अपने जख्म ही सहलाने में लगे हैं। अन्य मठाधीश बाबाओं के भी करोड़ों चेले व भक्त हैं। भ्रष्टाचार के मुद्दे पर इन्हें अपनी कुण्डली तोड़कर रामदेव और अण्णा के साथ आकर नागरिक समाज की ताकत मजबूत करने में अपना महत्तवपूर्ण योगदान देना चाहिए। 1964 में हजारों नगा साधुओं ने गोहत्या के खिलाफ जबरदस्त आंदोलन छेड़ा था। दयानंद सरस्वती, स्वामी विवेकानंद और महार्षि अरबिन्द जैसे दिग्गज संतों ने भी आजादी की लड़ाई में अपनी पुनीत आहुतियां दी थीं। क्योंकि अन्ना और बाबा जिन मुद्दों के क्रियान्वयन के लिए लड़ रहें हैं, उनमें गैरबाजिव मुद्दा कोई नहीं है। इसलिए सामंतवादी और पूंजीवादी राजनीति की शक्ल बदलनी है तो यह एक ऐसा सुनहरा अवसर है जिसमें प्रत्येक राष्ट्रीय दायित्व के प्रति चिंतित व्यक्ति को अपना सक्रिय समर्थन देने की जरूरत है।  अन्ना की तरह बाबा रामदेव भी एक सक्षम लोकपाल चाहते हैं।अन्ना भाऊ की तो एकमात्र मांग थी सक्षम व समर्थ लोकपाल, जिसे सरकार अक्षम व असमर्थ बनाने की कोशिश में लगी है। बाबा रामदेव विदेशी बैंकों में भारतीयों के जमा कालेधन को भी भारत लाकर राष्ट्रीय संपत्ति घोषित करवाना चाहते हैं। यदि यह धन एक बार देश में आ जाता है तो देश की समृध्दि और विकास का पर्याय तो बनेगा ही, आगे से लोग देश के धन को विदेशी बैंकों में जमा करना बंद कर देंगे। हालांकि कालाधन वापसी का मामला दोहरे कराधान से जुड़ा होने के कारण पेचीदा जरूर है, लेकिन ऐसा नहीं है कि सरकार मजबूत इच्छा शक्ति जताए और धन वापसी का सिलसिला शुरू हो ही न ? बाबा की दूसरी बड़ी मांग हजार और पांच सौ के नोटों को बंद करने की है। ये नोट बंद हो जाते हैं तो निश्चित ही ‘ब्लेक मनी’ को सुरक्षित व गोपनीय बनाए रखने और काले कारोबार को अंजाम देने के नजरिये से जो आदान-प्रदान की सुविधा बनी हुई, उस पर असर पड़ेगा। नतीजतन काले कारोबार में कमी आएगी। सरकार यदि काले धंधों पर अंकुश लगाने की थोड़ी बहुत भी इच्छाशक्ति रख रही होती तो वह एक हजार के नोट तो तत्काल बंद करके यह संदेश दे सकती थी कि उसमें भ्रष्टाचार पर रोकथाम लगाने का जज्बा पैदा हो रहा है।

बाबा रामदेव ‘लोक सेवा प्रदाय गारंटी विधेयक’ बनाने की मांग भी कर रहे हैं। जिससे सरकारी अमला तय समय सीमा में मामले निपटाने के लिए बाध्यकारी हो। समझ नहीं आता कि इस कानून को लागू करने में क्या दिक्कत है। बिहार और मध्यप्रदेश की सरकारें इस कानून को लागू भी कर चुकी हैं। मध्यप्रदेश में तो नहीं, बिहार में इसके अच्छे नतीजे देखने में आने लगे हैं। इस कानून को यदि कारगर हथियार के रूप में पेश किया जाता है तो जनता को राहत देने वाला यह एक श्रेष्ठ कानून साबित होगा। ऐसे कानून को विधेयक के रूप में सामने लाने में सरकार को विरोधाभासी हालातें का भी सामना कमोबेश नहीं करना पड़ेगा। प्रशासन को जवाबदेह बनाना किसी भी सरकार का नैतिक दायित्व है। 
बाबा की महत्वपूर्ण मांग अंग्रेजी की अनिवार्यता भी खत्म करना है। इसमें कोई दो राय नहीं अंग्रेजी ने असमानता बढ़ाने का काम तो पिछले 63 सालों में किया ही है, अब वह अपारदर्शिता का पर्याय बनकर मंत्री और नौकरशाहों के भ्रष्टाचार पर पर्दा डालने का भी सबब बन रही है। बीते एक-डेढ़ साल में भ्रष्टाचार के जितने बड़े मुद्दे सामने आए हैं, उन्हें अंग्रेजीदां लोगों ने ही अंजाम दिया है। पर्यावरण संबंधी मामलों में अंग्रेजी एक बड़ी बाधा के रूप में सामने आ रही है। जैतापुर परमाणु बिजली परिर्याजना के बाबत 1200 पृष्ठ की जो रिपोर्ट है, वह अंग्रेजी में है और सरकार कहती है कि हमने इस परियोजना से प्रभावित होने वाले लोगों को शर्तों और विधानों से अवगत करा दिया है। अब कम पढ़े-लिखे ग्रामीण इस रिपोर्ट को तब न बांच पाते जब यह मराठी, कोंकणी अथवा हिन्दी में होती ? लेकिन फिर स्थानीय लोग इस परियोजना की हकीकत से वाकिफ न हो जाते ? बहरहाल रामदेव के सत्याग्रही अनुष्ठान की मांगे उचित होने के साथ जन सरकारों से जुड़ी हैं। इस अनुष्ठान की निष्ठा खटाई में न पड़े इसलिए इन मांगों की पूर्ति के लिए सरकार समझौते के लिए सामने आती है तो उन्हें समय व चरणबध्द शर्तों के आधार पर माना जाए।
अंत में दो बाते ......
पहली बात बाबा के सत्याग्रह पर आपत्ति करने वालो से .... वैसे तो शायद ही कोई देशभक्त हो जो बाबा के मांगो से सहमत ना हो, फिर भी कुछ मांगो पे बहस हो सकती है जैसे भ्रष्टाचारियो को मृत्युदंड (फांसी) कि सजा देना,हा ये सच है कि दुनिया भर में फांसी कि सजा का विरोध करने वाले लोग बढ़ रहे है ऐसे में कठोर सजा और लूटे गए धन कि अधिकतम वसूली इसका विकल्प हो सकता है और इसपर सहमती बनाई जा सकती है। बड़े नोटों के बंद करने के मामले में कम से कम १००० के नोट तत्काल बंद किया जा सकता है। लेकिन कुछ लोग (खासकर भ्रष्ट और बेईमान लोग) बेवजह भी आपत्ति कर रहे है , और ऐसे लोग बाबा को अपना काम करना चाहिए जैसे फार्मूले भी सुझा रहे है । कुटिल दिग्विजय सिंह का तो पहले ही एक ब्लोगीय कोर्टमार्शल कर चूका हु अब एक नया नाम बडबोले शाहरुख़ खान का आया है।जी हा वही जनाब शाहरुख़ खान जो परदे पे दुसरो का चरित्र निभाते निभाते अब अपने वास्तविक जीवन में भी बहुरुपिया हो गये है , किसी भी मामले में अपनी टांग अड़ाने में माहिर है , चाहे IPL में पाकिस्तानी खिलाडियों के ना खिलाने का मामला रहा हो या दिग्गज कलाकारों से द्वेष करना हो, खुद को किंग खान मान लेना हो या पूर्व कप्तान गावस्कर , सौरव गांगुली का अपमान करने कि कोशिश, मौका नहीं छोड़ते। खुद नाचते गाते क्रिकेट में घुसना हो (धंधे के लिए) और दुसरो को अपने काम करे का नसीहत देते है। खुद राहुल बाबा की चापुलुसी करने वाला बाबा रामदेव को कैसे जान सकता है,कोलकाता की टीम शेयर में काले धन का जम कर इस्तेमाल हुआ है वक्त आने पे सब पता चल जायेगा।ऐसे लोगो के लिए बाबा का ये कथन ही काफी है
"कुछ लोग पूछते है कि आप तो योगी हैं, आपको भ्रष्टाचार से क्या सरोकार। मैं बताना चाहता हूं कि यह योग का विस्तार है। चोरी नहीं करना योग है, सच बोलना योग है, अच्छा आचरण योग है"
दूसरी बात बाबा के समर्थन करने वालो से ....हम सभी समर्थको को इस बात का ध्यान रखना चाहिए की जब हम अपने घर, पड़ोस, दफ्तर में भ्रष्टाचारी को बर्दाश्त करना बंद करेंगे और मौके पर न्याय करना शुरू करेंगे तब एक-एक कर भ्रष्टाचारी कम होंगे। जब देश का हर नागरिक आसपास किसी को रिश्वत लेते या देते देखते ही प्रतिक्रिया करना शुरू करेगा और बाकी लोग तुरंत उसके साथ खड़े होंगे, तब इस कैंसर के विरुद्ध असली क्रांति शुरू होगी। वन्देमातरम ! सत्यमेव जयते !

आप सभी के विचार आमंत्रित है - अजय कुमार दूबे

8 comments:

अजय कुमार दूबे said...

योगगुरु बाबा रामदेव जी के आगे सरकार को नतमस्तक होना ही पड़ेगा, जय हिंद

दीपक बाबा said...

बाबा बहुत बोले है तू....... बहुत बोले है...... तने बैरा नहीं ठाकुर(आइन) को किसी भगवाधारी की ऊँची आवाज पसंद नहीं है .....

DR. ANWER JAMAL said...

हमारी नज़र में तो जैसा भूतनाथ वैसा प्रेतनाथ ।
शासन तो BJP का भी आया था ।

1. क्या उसने लोकपाल बिल मंज़ूर कराया ?

2. क्या वह विदेशों से काला धन वापस लाई ?

आज अपने वोट बैंक खो देने के डर से ये बाबा का साथ दे रहे हैं । जो इनके ख़िलाफ़ नहीं बोलता , उसे क्या उपाधि दी जाएगी ?

वंदे ईश्वरम्

Bharat Bhushan said...

देस को संन्यासियों के नेतृत्व में छो़ड़ना अच्छा नहीं है.

Anonymous said...

रामलीला मैदान में इतना बुरा होगा मै तो सोच भी नहीं सकता था

Anonymous said...

बहुत बुरा हुआ भाई .......

दिवस said...

भाई अजय दुबे जी बेहद सुन्दर लेख...मैं भी बाबा रामदेव के इस आन्दोलन में पोरी तरह से कार्यरत हूँ| मैं दिल्ली के रामलीला मैदान में भी था|

भाई अजय दुबे जी आप मेरे ब्लॉग को Follow कर रहे हैं...मैंने अपने ब्लॉग के लिए Domain खरीद लिया है...पहले ब्लॉग का लिंक pndiwasgaur.blogspot.com था जो अब www.diwasgaur.com हो गया है...अब आपको मेरी नयी पोस्ट का Notification नहीं मिलेगा| यदि आप Notification चाहते हैं तो कृपया मेरे ब्लॉग को Unfollow कर के पुन: Follow करें...
असुविधा के लिए खेद है...
धन्यवाद....

Anonymous said...

ॐ शांति ! ॐ शांति !