२ अप्रैल की रात हमारे खिलाडियों द्वारा प्राप्त ऐतिहासिक विजय ४ अप्रैल से शुरू हुए हिन्दू नव संवत्सर का शानदार तोहफा बन गया है, जिसने नव वर्ष का नव हर्ष और नव उमंग के साथ आगाज कर दिया है।
आखिर 28 सालों के बाद हमारा सपना साकार हुआ है। विजय के इस समय का रोमांच कहीं भी महसूस किया जा सकता है। जरा 30 मार्च के पूर्व देश के सामूहिक मनोविज्ञान को याद करिए और 2 अप्रैल की अर्धरात्रि के माहौल से तुलना करिए। क्या दोनों के बीच कोई साम्य दिखता है? ऐसा लगेगा ही नहीं कि यह वही देश है जो 30 मार्च से पूर्व की गहरी हताशा, क्षोभ, उद्वेलन एव भविष्य को लेकर आशकाओं के गहरे दुश्चक्र में फंसा दिख रहा था। 30 मार्च को पाकिस्तान के साथ खेल में जैसे-जैसे विजय की स्थिति बनती गई, ऐसा लगने लगा मानो गहरी निराशा पर किसी मनोचिकित्सक का उपचार चमत्कार की तरह कारगर साबित हो रहा है। विश्व कप का फाइनल इसका चरमोत्कर्ष था। वीरेंद्र सहवाग एव सचिन तेंदुलकर के आउट होने के बाद गौतम गंभीर एव विराट कोहली के सतुलन ने क्रिकेट प्रेमियों का आत्मविश्वास वापस दिलाया और धोनी के अंतिम छक्के ने तो मानो सामूहिक रोमांच को पराकाष्ठा पर पहुंचा दिया। तो क्या 50-50 ओवरों के क्रिकेट में ऐसा कोई जादू है जिसने देश के माहौल को ऐसा बना दिया है, जिसमें पूर्व की सारी निराशाएं एकबारगी ओझल हो चुकी हैं?
निश्चय ही इसके उत्तर पर देश में एक राय नहीं हो सकती। आखिर एक समय भद्रजनों का खेल माने जाना वाला क्रिकेट जिस प्रकार बाजार का अंग बनकर खेल की बजाय चकाचौंध और मादकता का आयोजन बनता गया है उसकी आलोचना इसके विवेकशील समर्थक व प्रेमी भी कर रहे हैं। स्वयं इस विश्व कप में जितने धन का वारा-न्यारा हुआ वह निश्चय ही चिंताजनक है। ऐसा साफ दिखता है कि इसमें से खेल भावना तथा खेल के जो सकारात्मक उद्देश्य थे वे गायब हो रहे हैं और बाजार तंत्र उसकी दिशा-दशा का निर्धारणकर्ता बन रहा है। बावजूद इसके यह तो स्वीकार करना होगा कि क्रिकेट हमारे देश में ऐसा खेल बन गया है जो शहरों से गांवों तक, उच्च वर्ग से लेकर निम्न वर्ग तक सभी को कुछ समय के लिए एक धरातल पर ला देता है। क्रिकेट के अलावा ऐसी कोई विधा या आयोजन नहीं दिखता जो कि देश में कुछ समय के लिए ही सही बड़े वर्ग की मनोदशा को एक स्थान पर लाता है। इस नजरिए से विचार करने वाले मानते हैं कि यदि योजनापूर्वक क्रिकेट का उपयोग हो तो देश के लिए यह वरदान भी साबित हो सकता है।
29 मार्च तक देश में लगातार उभर रहे एक से एक भ्रष्टाचार, फिर विकिलीक्स के नंगे खुलासे आदि को लेकर देश में जुगुप्सा का माहौल था। केंद्रीय राजनीति के दोनों प्रमुख समूहों के एक-दूसरे के खिलाफ मोर्चाबदी में पूरा देश विभाजित हो चुका था। सरकारी पक्ष अपनी निराशा में विपक्ष के विरुद्ध आए एकाध खुलासे पर उसे ही कठघरे में खड़ा करने की बेशर्म रणनीति अपना चुका था। इससे यकीनन माहौल मे ऐसी उमस पैदा हो रही थी जिससे निकलकर लोग ताजगी की तलाश कर रहे थे। पहले सेमीफाइनल में पाकिस्तान पर विजय और फिर 28 वर्ष बाद विश्व कप पर ऐतिहासिक कब्जे ने वह ताजगी उपलब्ध करा दी है। आज इन पर चर्चा कहीं नहीं हो रही। यहा तक कि क्रिकेट के बीच दूरसंचार घोटाले के आरोप पत्र की खबर तक पर चर्चा करने की चाहत नजर नहीं आई। इस नाते देखा जाए तो महेंद्र सिह धोनी और उनकी टीम का एक महत्वूपर्ण राष्ट्रीय योगदान है। खेल के नजरिए से इसका विश्लेषण करने वाले श्रीलंका एवं भारत, दोनों की गेंदबाजी, क्षेत्ररक्षण एवं बल्लेबाजी सहित संपूर्ण रणनीतियों का विश्लेशण कर रहे हैं और उनमें हम आप भी शामिल हैं। कई लोग 1996 विश्व कप के सेमीफाइनल में श्रीलंका के हाथों मिली करारी पराजय के आघात से उबरने की बात कर रहे हैं तो कुछ की दलील है कि इस बार फाइनल में एशिया की दो टीमों का पहुंचना क्रिकेट की दुनिया से पश्चिम के वर्चस्व का अंत है। इनके अनुसार यह केवल खेल नहीं पूरी दुनिया की तस्वीर में आने वाले बदलाव का सूचक हो सकता है। जरा पीछे लौटिए। 1983 में भारत ने कपिल देव के नेतृत्व में वेस्टइंडीज के एकाधिकार को धक्का दिया था और तब यह केवल क्रिकेट ही नहीं, प्रमुख देशों के राजनीतिक नेतृत्व के लिए भी अनपेक्षित था। सन 2003 में भारत फाइनल में पहुंचा, लेकिन ऑस्ट्रेलिया के वर्चस्व को तोड़ना सभव न हो सका। पिछले कुछ सालों में ऐसा लगता ही नहीं था कि ऑस्ट्रेलिया का वर्चस्व कोई देश तोड़ सकता है। इस बार तो ऑस्ट्रेलिया पर कोई दांव लगाने को तैयार नहीं था। भारत पर सबकी नजर थी।
क्या इसके पीछे कारण केवल क्रिकेट है या फिर पिछले कुछ सालों में विश्व परिदृश्य मे भारत के उद्भव को लेकर जो वातावरण बना है उसका भी हाथ है? स्वय पश्चिमी देश ही पिछले कुछ सालों से यह भविष्यवाणी कर रहे हैं कि भारत विश्व की भावी महाशक्ति होने की ओर अग्रसर है। भारत को चारों ओर जितना सम्मान मिल रहा है उसका मनोवैज्ञानिक असर यहा के खिलाड़ियों पर होना स्वाभाविक है। इस नाते विश्व के वर्तमान ढांचे के तहत भविष्यवाणी करने वाले समाजशास्त्री कह सकते हैं कि विश्व कप के फाइनल में दो एशियाई टीम का पहुंचना तथा भारत की विजय केवल एक विजय भर नहीं है, इससे एक दौर का अंत एव दूसरे दौर की शुरुआत हुई है। 1992 में पाकिस्तान की विजय एव 1996 में श्रीलका की विजय के समय विश्व का ऐसा परिदृश्य नहीं था। तब दो विचारधाराओं की राजनीति में वर्चस्व का शीतयुद्ध था। 1983 में विजय के समय पश्चिम के ज्यादातर संपन्न देशों के लिए भारत ऐसा देश भी नहीं था जिसकी विश्व परिदृश्य मे कोई अहमियत हो। 2011 इन मायनों मे कितना अलग है हम देख सकते हैं। केवल विश्व कप पर विजय का क्षणिक रोमांच से सपना साकार नहीं हो सकता। खेल की सीमाएं हैं। खिलाड़ियों ने अपना काम कर दिया है। अब देश को अपनी भूमिका निभानी है।
आप क्या सोचते है ?आपके विचार आमंत्रित है - अजय दूबे
35 comments:
बहुत सुंदर लेख ..
सच आज सारा भारत गौरवान्वित हुआ है ...
आपको बहुत बढ़िया प्रस्तुति एवं नवसंवत्सर की हार्दिक शुभकामनाएं !!
भूमिका तो लोग निभा ही रहे हा
करोडो रूपये सरकार उन्हें दे रही है
जो सब मेहनत कर टैक्स जमा कर रहे है
बहुत बढ़िया प्रस्तुति एवं नवसंवत्सर की हार्दिक शुभकामनाएं|
achchha lekh
Ajay ji aap har post ek alag hi dristikone rakhti hai
aapki lekhni ko naman
achchha lekh
Ajay ji aap har post ek alag hi dristikone rakhti hai
aapki lekhni ko naman
बिल्कुल सही हम सब ख़ुशी से झूम उठे हैं..... नवसंवत की शुभकामनायें
आपको भी नवसंवत्सर और वर्ल्ड कप घर आने की बधाइयाँ......
very good thought......thank sir ji
saurav singh . banglore
जबरजस्त लेखनी ..........धन्यबाद
सुधीर यादव
अब देश में बने उत्साह के माहौल से बहुत कुछ और बेहतर किया जा सकता है ..... आप सभी को नव संवत २०६८ की हार्दिक शुभकामनायें !!
विजयी विश्व तिरंगा प्यारा , झंडा ऊचा रहे हमारा
जय हिंद !!
nice post....
भारत को ईश्वर का आशीर्वाद इसी तरह मिलता रहे.
नव संवत की बधाई आपको भी
काफी दिनों बाद आपने ये पोस्ट लिखी है . लगता है आप वर्ल्ड कप पे नज़रे टिकाये बैठे थे .... अच्छा है
शानदार पोस्ट के लिए धन्यवाद
यत्र तत्र सर्वत्र , खुशियाँ बिखर गयी हैं । बधाई ।
humsab khush hai india ke liye ... jai hind
happiest moment of india....
हा अजय जी धोनी की सेना ने तो अपना काम कर दिया है अब हम सब की बारी है ....... ख़ुशी के इस माहौल का सार्थक उपयोग होना चाहिए
धन्यबाद
अन्ना भाऊ तो एक क्रांति का आगाज़ भी कर दिए है .... हमसब उनका साथ दे के उनके अभियान को सफल बनाना है ..... जय हिंद
संतोष जी ये नव संवत नव उमंग और जोश के साथ शुरू हुआ है पहले क्रिकेट में विजय और अब भ्रस्टाचार के खिलाफ अन्ना भाऊ की आमरण अनशन ....... हमे क्रिकेट के तरह ही इस अभियान में उनका हौशला बढ़ाना है मै सभी मित्रो से जंतर मंतर की मुहीम में शामिल होने की अपील करता हु ...धन्यबाद
वन्दे मातरम ...... जय जय हे !
भारत का गौरव बढ़ाने वाले खिलाडियों को बहुत बहुत शुभकामनाये ...... आप सभी को भी नव संवत की बधाई
धन्यबाद
विक्रम संवत २०६८ की आप सभी को हार्दिक शुभकामनाये .......भारत की एतिहासिक विजय की भी ढेरो बधाई !
धन्यबाद
congratulation to sachin and team india ...... thanx
Romentic victory Pahela maara Goro ko ( Aus). Fir Mara Haram Khoro ko (Pak) Aur ab maara sitaji k choro ko ( SL ). .................... Congrets INDIA
jai ho
सबसे पहले तो शानदार जीत की मुबारकबाद .........नव वर्ष की शुभकामनाये
अजय जी निश्चय ही खेलो की अपनी सीमाए है ये हमे जीत के उत्साह से भर सकती है पर असली जीत तो ....... इस देश भ्रस्टाचार मिटा करके ही हासिल की जा सकती है !
बहुत ही सुन्दर पोस्ट ..... शुक्रिया
भारतीय क्रिकेट टीम को शानदार जीत की बधाई ...... आपने हम सबका सपना पूरा किया है .... सचिन तेंदुलकर को भी बहुत मुबारकबाद
आपलोगों ने ये जो नवसंवत का तोहफा हमें दिया है हम सब भारतवाशी कभी नहीं भूल पाएंगे ...... बधाई सबको
अन्ना हजारे को हमारा दिल से समर्थन है ..... अन्ना जी आप के मिशन को जरूर कामयाबी मिलेगी ...जय हिंद जय भारत
पार्थ भाई आप तो विदेश में है फिर भी आपके समर्थन का स्वागत करता हु ...... हम सब तो जंतर मंतर पे अन्ना हजारे के साथ है ! जय हिंद
हा नरेन्द्र जी
सबसे पहले तो आप दिल्ली में अन्ना हजारे के साथ है इसकेलिए बहुत बहुत धन्यबाद ..... भाई साहब हम भले विदेश में है पर हमारा दिल हमेशा भारत में रहता है अन्ना जी की जंग हम सब के कल्याण के लिए है ..जय हिंद
nice one jai ho
नव वर्ष मंगलमय हो अजय जी
अच्छे है आपके विचार, ओरो के ब्लॉग को follow करके या कमेन्ट देकर उनका होसला बढाए ....
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