भगवत् कृपा हि केवलम् !

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Thursday, 17 February 2011

न्यायिक सक्रियता के निहितार्थ

ऐसा महसूस हो रहा है कि देश को इस समय कोई जनता के द्वारा चुनी गई सरकार नहीं बल्कि न्यायपालिका चला रही है। सरकार नाम की कोई ताकत सत्ता में है और देश का कामकाज भी निपटा रही है ऐसा लगना काफी पहले से बंद हो चुका है। ऐसा महसूस होने देने के पीछे भी सरकार का ही हाथ है। जनता देख रही है कि देश की सेहत से जुड़े अहम मामलों पर फैसले करने अथवा सलाह देने का काम न्यायपालिका के हवाले हो गया है और सरकार अदालती कठघरों में खड़ी सफाई देती हुई ही नजर आती है। संसद ठप-सी पड़ी है और सुप्रीम कोर्ट की सक्रियता बढ़ गई है। बहस का विषय हो सकता है कि क्या यह स्थिति किसी प्रजातांत्रिक व्यवस्था के लिए उचित और फायदेमंद है। ऐसा कौन सा मुद्दा है जो आज सुप्रीम कोर्ट की चौखट पर फैसले के लिए गुहार नहीं लगा रहा है? और सवाल यह भी है कि इन मुद्दों में कौन-सा ऐसा है जिस पर सरकार स्वयं कोई न्यायोचित फैसला नहीं ले सकती है? एक वक्त था जब बहस इस बात पर चलती थी संसद की सत्ता सर्वोच्च है या न्यायपालिका की?

केशवानंद भारती केस में न्यायपालिका की व्यवस्था के बाद सालों साल इस पर बहस भी चली। संसद और न्यायपालिका के बीच अधिकार-क्षेत्र को लेकर कई बार टकराव की स्थितियां भी बनीं। पर आज के हालात देखकर लगता है कि न तो सरकार ही और न ही जनता के चुने हुए प्रतिनिधि ही इतनी दयनीय स्थिति में पहले कभी देखे गए। ऐसे हालात तभी बनते हैं जब सरकार का अपनी ही संस्थाओं पर नियंत्रण खत्म होता जाता है या फिर उसका अपनी जनता पर से भरोसा उठ जाता है। सत्ता में काबिज लोगों को ऐसा आत्मविश्वास होने लगता है कि सबकुछ ठीकठाक चल रहा है और स्थिति पूरी तरह से नियंत्रण में है। न तो कोई अव्यवस्था है और न ही कोई भ्रष्टाचार, विपक्षी दलों द्वारा जनता को जान-बूझकर गुमराह किया जा रहा है। दूरसंचार घोटाले पर नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (कैग) की रिपोर्ट को लेकर कपिल सिब्बल जैसे जिम्मेदार केंद्रीय मंत्री द्वारा किया गया दावा और उस पर न्यायपालिका सहित देशभर में हुई प्रतिक्रिया इसका केवल एक उदाहरण है। विभिन्न मुद्दों पर सरकार द्वारा व्यक्त प्रतिक्रिया ठीक उसी प्रकार से है जैसे भयाक्रांत सेनाएं मैदान छोड़ने से पहले सारे महत्वपूर्ण ठिकानों को ध्वस्त करने लगती हैं।
आश्चर्यजनक नहीं कि एक अंग्रेजी समाचार पत्र द्वारा वर्ष 2011 के लिए देश के सर्वशक्तिमान सौ लोगों की जो सूची प्रकाशित की गई है उसमें पहले स्थान पर सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एसएच कापड़िया को रखा गया है। दूसरा स्थान कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी को और तीसरा एक सौ बीस करोड़ की आबादी वाले देश के प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह को प्रदान किया गया है। इस क्रम पर अचंभा भी व्यक्त किया जा सकता है और जिज्ञासा भी प्रकट की जा सकती है। बताया गया है कि मुख्य न्यायाधीश के रूप में श्री कापड़िया आज सुप्रीम कोर्ट की ताकत का प्रतिनिधित्व करते हैं। एक ऐसे वक्त जब राजनीति का निर्धारण न्यायपालिका के फैसलों/टिप्पणियों से हो रहा है, नंबर वन न्यायाधीश और उनकी कोर्ट देश का सबसे महत्वपूर्ण पंच बन गई है। अयोध्या मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय में लंबित फैसले को लेकर जब राजनीति की सांसें ऊपर-नीचे हो रही थीं, बहसें सुनने के बाद उन्होंने यह निर्णय देने में एक मिनट से कम का समय लगाया कि हिंसा फैलने की आशंकाओं को बहाना नहीं बनने दिया जाना चाहिए। इलाहाबाद उच्च न्यायालय को अपना फैसला सुनाना चाहिए।

चिंता का मुद्दा यहीं तक सीमित नहीं है कि राष्ट्रमंडल खेलों में सरकार की नाक के ठीक नीचे हुए भ्रष्टाचार से लेकर विदेशों में जमा काले धन की वापसी के सवाल तक पिछले महीनों के दौरान जितने भी विषय उजागर हुए उन सबमें सच्चाई सामने आने की संभावनाएं न्यायपालिका के हस्तक्षेप के बाद ही प्रकट हुईं और ऐसा कोई आश्वासन नहीं है कि जो सिलसिला चल रहा है वह कहीं पहुंचकर रुक जाएगा।

क्या ऐसी आशंका को पूर्णत: निरस्त किया जा सकता है कि लगातार दबाव में घिरती हुई कार्यपालिका किसी मुकाम पर पहुंचकर न्यायपालिका के फैसलों को चुनौती देने, उन्हें बदल देने या उन पर अमल को टालने की गलियां तलाश करने लगे। या फिर न्यायपालिका पर राजनीतिक आरोप लगाए जाने लगें कि वह शासन के कामकाज में हस्तक्षेप करते हुए अग्रसक्रिय (प्रोएक्टिव) होने का प्रयास कर रही है, टकराव की स्थिति इससे भी आगे जा सकती है। ऐसा अतीत में हो चुका है।

अक्टूबर 2009 में जब इटली की 15 सदस्यीय संवैधानिक पीठ ने व्यवस्था दी कि वहां की संसद द्वारा पूर्व में पारित कानून, जिससे प्रधानमंत्री को उनके खिलाफ चलाए जाने वाले मुकदमों के प्रति सुरक्षा (इम्यूनिटी) प्राप्त होती है असंवैधानिक है तो भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे सिल्वियो बलरूस्कोनी ने निर्णय को यह कहते हुए चुनौती दे दी कि संवैधानिक पीठ पर वामपंथी जजों का आधिपत्य है। उन्होंने कहा कि ‘कुछ नहीं होगा, हम ऐसे ही चलेंगे।’ उन्होंने कोर्ट को ऐसी राजनीतिक संस्था निरूपित किया, जिसकी पीठ पर 11 वामपंथी जज बने हुए हैं।


न्यायपालिका की संवैधानिक व्यवस्थाओं को तानाशाही तरीकों से चुनौती देने की स्थितियां और कार्यपालिका के कमजोर दिखाई देते हुए हरेक फैसले के लिए न्यायपालिका के सामने लगातार पेश होते रहने की अवस्था के बीच ज्यादा फर्क नहीं है। एक स्वस्थ प्रजातंत्र के लिए दोनों ही स्थितियां खतरनाक हैं। 

चूंकि इस समय देश का पूरा ध्यान सरकार व न्यायपालिका के बीच चल रहे संवाद व अदालती व्यवस्थाओं पर केंद्रित है, विपक्ष की इस भूमिका को लेकर कोई सवाल नहीं खड़े कर रहा है कि कार्यपालिका को कमजोर करने में भागीदारी का ठीकरा उसके सिर पर भी फूटना चाहिए। जो असंगठित और कमजोर विपक्ष न्यायपालिका की ताकत को ही अपनी ताकत समझकर आज सरकार के सामने इतना इतरा रहा है वह स्वयं भी कभी आगे चलकर इसी तरह के टकरावों की स्थितियों का शिकार हो सकता है। यह मान लेना काफी दुर्भाग्यपूर्ण होगा कि देश का राजनीतिक विपक्ष न्यायपालिका के फैसलों और टिप्पणियों में ही अपने लिए शिलाजीत की तलाश कर रहा है। 

आप क्या कहते है ? अजय 


40 comments:

अजय कुमार दूबे said...

एक स्वस्थ प्रजातंत्र के लिए दोनों ही स्थितियां खतरनाक हैं। आप क्या सोचते है?

Anonymous said...

न्यायपालिका ही आजकल देश चला रहा है नेता बेशर्मी की हद पर चुके है

Anonymous said...

अयोध्या मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय में लंबित फैसले को लेकर जब राजनीति की सांसें ऊपर-नीचे हो रही थीं, बहसें सुनने के बाद उन्होंने यह निर्णय देने में एक मिनट से कम का समय लगाया कि हिंसा फैलने की आशंकाओं को बहाना नहीं बनने दिया जाना चाहिए। इलाहाबाद उच्च न्यायालय को अपना फैसला सुनाना चाहिए।

good

Unknown said...
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Narendra said...

हमारे माननीय प्रधान मंत्री जी श्री मनमोहन जी को देश की चिंता नही है चाहे देश डूबे या कितना ही भ्रस्टचार हो मगर सभी पार्टियो को खुश रखना है जो इनको समर्थन दे रही है , मनमोहन जी अब तो आप कुर्सी का लालच छोड़ दो 7 साल से प्रधान मंत्री हो अभी भी कुर्सी की इतनी चिंता, इतना लालच अब तो कुछ देश प्रेम दिखा दो भरस्टाचारियो ओर देश के गददारो को मत बचाओ और स्विस बैंक के अकाउंट होल्डरो के नामो का खुलासा करो. कब तक इटॅलियन मेडम के गुलाम बने रहोगे, सिंह कब सच का किंग बनेगा?.....

Narendra said...

लगता है कि राज तंत्र आहट दे रहा है कभी भी दस्तक दे सकता है !

संतोष शर्मा said...

मैने पर्धानमंत्री की प्रेस मीट देखी . पर्धानमत्र को खुद को बचाने के लिए अपने मीडिया आड्वाइज़र की ज़रूरत पद रही थी कितने शर्म की बात है . चलो माना 2 जी स्पेक्ट्रम मे कारवाई करते हुए गठबंधन की मजबूरी समझ मे आती है पर आदर्श घोटाला , कॉमनवेल्त घोटाला , एस बांड इन सब मे तो सीधे कांग्रेस ज़िम्मेदार हैफिर भी कार्रवाई क्यों नही हो रही है . कितनी बेशर्मी से पर्धानमत्री खुद को ज़िम्मेदारी से बचना चाहते हैं और काहे का ईमानदार मनमोहन जो बेईमान लोगों को संरक्षण दे रहा हो वो अपराधी है . देशमुख जिसकी वजह से महाराष्ट्र सरकार पर दस लाख का जुर्माना हुआ परन्तु वो केंद्र मे मंत्री है वहाँ पर्धान मंत्री की क्या मजबूरी है उसे मंत्री बनाए रखना इस सरकार और पर्धान मात्र के घटीयपन और बेशर्मी का एक उदाहरण है.

संतोष शर्मा said...

अजय जी

हा सही कहा आपने ये देश तो अब न्यायलय ही चला रहा है न सर्कार का पता है न विपक्ष का

भगवान ही मालिक है इस देश का

Narendra said...

अब ज़रूरी हो गया है कि चुनाव के वक़्त एक विकल्प वोट शीट में आए "कोई भी योगया नही" और विधान परिषद या राज्य सभा जैसे सदन समाप्त कर दिए जाए ताकि मनमोहन सिंह जैसे नपुंसक जो जनता का सामना नही कर सकते वो इतनी महत्वपूर्ण कुर्सी पर ना बैठ पाए.
जो इज़्ज़त मनमोहन ने वित्त मंत्री रहते कमाई थी वो तो सोनिया की चप्पल उठाने वाले के रूप मे प्रधानमंत्री बन कर गँवा दी.
हमे तुम पर दया आती है मनमोहन सिंह.

Anonymous said...

It is said that a 'wise enemy is bettter than a fool friend'. ManMohan Singh is a fool firend for India, It is not a good sign for our country.

Anonymous said...

सारे जहां से अच्छा, ये घोटाला हमारा

Narendra said...

कभी कभी ये लगता है की हो सकता है की हमारे प्रधान मंत्री ईमानदार हों. पर हमें ईमानदार नहीं काम करने वाले प्रधान मंत्री की ज़रूरत है! वैसे भी ईमानदार नपुंसक से बेईमान पुरुष ज़्यादा अच्छा हैं !

संतोष शर्मा said...

लगता ह. क्रिकेट से पहले एक वर्ल्ड कप तो घोटालों का ही चल रहा ह देश की पॉलिटिकट पार्टीस के बीच मे....

Anonymous said...

गली गली में शोर है , पूरी कांग्रेस पार्टी चोर है.

संतोष शर्मा said...

सुना है अभिनव कश्यप दबंग की सफलता के बाद मनमोहन सिंह को लेकर अपंग बनाने जा रहे हैं.

बस्तर की अभिव्यक्ति जैसे कोई झरना said...

आज तो मन्नू ने स्वीकार कर लिया है कि गठबंधन सरकार को चलाने की मजबूरी में उन से कुछ गलतियाँ हुयी हैं ...अब सवाल यह है कि चलाना किसे है देश को या सरकार को ? अपरोक्ष रूप से चुप्पू दादा ने घोषित कर दिया है कि उनकी दृष्टि में सरकार पहले है देश बाद में ......उन्हें सरकार का हित देखना है न कि देश का ...
भगवान न करे इस देश को भविष्य में फिर कोई बिना रीढ़ की हड्डी वाला प्रधान मंत्री मिले.

अजय कुमार दूबे said...

कौशलेन्द्र जी

बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है ये सब देश के लिए .....

प्रीती मिश्रा said...

हमारे शीर्ष लीडर चापलूस नजर आते है ऐसे चमचागिरी उचे पदों पे बैठे लोगो को शोभा नहीं देती

Anonymous said...

trahimam trahimam

Anonymous said...

shukr hai ki suprem court hai warna kab ka rashtra nilam ho chuka hota ....

अजय कुमार दूबे said...
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प्रीती मिश्रा said...

पत्रिका ने सही सूची बनाई है

धन्यबाद

प्रीती मिश्रा said...

पत्रिका ने सही सूची बनाई है

धन्यबाद

Anonymous said...

श्री मनमोहन सिंह को अगर ज़रा भी शर्म होगा तो वो 28.02.11 के पहले इस्तीफ़ा दे देंगे या सभी लूटा गया धन देश में का ओर विदेश का वापस ला कर ही संसद मे जाएँ ओर नही तो चुल्लू भर पानी मे डूब म...रे

पार्थ रावत said...

मनमोहनसिंह तो बेचारा १० जनपद का संविदा कर्मी है इसे कोसने से कुच्छ हासिल नही होने वाला|

पार्थ रावत said...

कांग्रेस के अलावा भाजपा भी कम नही है ,दिल्ली नगर निगम मे भाजपा की सरकार है दोनो पार्टियो के निगम पार्षद खुले आम निगम अधिकारियो से मिलकर लोगो को लूट कर करोड़ो रुपये हर महीने अपनी जेबो मे भर रहे है कोई कहने वाला नही है न ही सुनने वाला , चोर-चोर मोसेरे भाई !

Anonymous said...

सच बता रहा हू | हमारी गैया पहले मनमोहनसिंग के फोटो का अख़बार नही खाती थी अब खा जाती है |

पार्थ रावत said...

आप ईमानदार है, सब जानते है परंतु सरकार के मुखिया होने के नाते आपकी ये ज़िम्मेदारी बनती है की आपके मंत्री सही काम करे. यदि आप सरकार नही चला सकते तो जनादेश लीजिए और नये चुनाब कराईए.

Narendra said...

मनमोहन सिंह जी आप सबसे निकामे प्रधान मंत्री है आप जब से आए तब से देस की आम आदमी की हालत बदतर हो गयी आयी. आप के सोनियाज़ी कहते थी की कांग्रेस का हाथ आम आदमी की साथ आज हम लोगो को पता चला की कांग्रेस का हाथ और आम आदमी का गला . आप हम लोगो की गला दबाते रहो. हम लोगो ने सोचा था की पढ़ा लिखा ईमानदार प्रधान मंत्री देश का कल्याण करेगा लेकिन आप तो छुपे रुस्तम निकले और देश का पूरा सत्यनास करने पे तुले हो . मैने जो कांग्रेस को वोट देने की ग़लती की उसका खामियाना भुगत रहा हू.

पार्थ रावत said...

@narendra ji
कब तक ये जज लोग देश चलाएंगे जब इन्हे लगने लगेगा की ये ही सब कुछ है .......तब सोचिये क्या होगा .....सिर्फ अनर्थ

Narendra said...
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Narendra said...

हा पार्थ जी
भ्रष्टो को देखकर कोई भी ख़राब हो सकता है बहते पानी में ये जज भी हाथ धोने लगेंगे ....इन्हे तो वोट भी नहीं मागना है

पार्थ रावत said...

मनमोहन सिंह जी हम को आपसे बड़ी उमीदे थी पर सब निराशा हाथ लगी

Narendra said...

"सरकार गिर भले ही जाए लेकिन भ्रष्टाचार से नहीं बचाएँगे", ये दम कांग्रेसियों में कहाँ- और कांग्रेस के यही गुण देश को खोखला कर रहे हैं,

Unknown said...

टेलीविज़न संपादकों के सवालों का जवाब देते हुए प्रधान मंत्री जी थके हुए बीमार से व्यक्ति दिख रहे थे. कम से कम अब तो मनमोहन सिंग जी को राजनीति से छुट्टी देनी चाहिए. किसी अच्छे इंसान का इतना बुरा अंत नही होने देना चाहिए. कांग्रेस के दूसरे लोग भी अपनी छीछालेदार करवाए क्यो एक को ही निचोड़ रहे है?

Anonymous said...

He is not "HELPLESS" He is " HOPELESS"

krati bajpai said...

apka blog hakikat main kabile tarif hai. ek pryas maine bhi kiya hai, krapya waqt milane par dekhen aur comment bhi de. journalistkrati.blogspot.com

अजय कुमार दूबे said...

वाजपेई जी धन्यबाद

Anonymous said...

thanks

अजय कुमार दूबे said...

ठीक है बाजपेई जी