मित्रो आप सभी को भारत के 62वे गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ!। देश की आजादी को छह दशक बीत चुके हैं। धीरे-धीरे लोकतंत्र प्रौढ़ हो रहा है। ऐसे में लोकतंत्र में सियासी फसल काटने को बेताब स्वार्थी लोगों के बीच एक नए तंत्र लूटतंत्र का बोलबाला बढ़ता जा रहा है। मंत्री, सांसद, विधायक और अन्य जनप्रतिनिधि इस नए तंत्र के बिना शायद खुद को अधूरा समझते हैं। इसी कारण सरकारी से लेकर निजी स्तर पर उनके कुनबे में लूटपाट करने वालों की तादाद बढ़ती जा रही है। ऐसे में गणतंत्र की स्थापना की वर्षगांठ पर जश्न के क्या मायने हैं, इसे भी सोचना होगा। राशन की दुकानों से लेकर विकास कार्यों के टेंडरों लेने तक सब जगह लूटतंत्र का ही बोलबाला नजर आ रहा है। गरीबों की कहीं कोई सुनवाई नहीं है, दबंग और बाहुबली ही उन पर राज करते नजर आ रहे हैं। छोटे व कमजोर लोगों की तब तक सुनवाई नहीं होती जब तक वह कानून को हाथ में लेने की स्थिति में नहीं आ जाते। इन हालातों में 26 जनवरी, 15 अगस्त और 2 अक्टूबर मनाने की परंपरा महज दिखावा बनती जा रही है। इन कार्यक्रमों में नेता हों या अफसर सभी सत्य, अहिंसा और ईमानदारी के लिए लंबे-लंबे भाषण देने से गुरेज नहीं करते। लेकिन उनकी यह नसीहत महज कार्यक्रम तक ही सीमित रह जाती है। अगले ही दिन जब वह अपने कार्यालय में होते हैं तो सुर, लय और ताल सब दूसरे हो जाते हैं। भ्रष्टाचार के बारे में घंटों बयानबाजी करने वाले नौकरशाहों या जनप्रतिनिधियों से उनकी ईमानदारी के बारे में पूछा जाए तो शायद कोई जवाब देने की स्थिति में नहीं हैं। इतना ही नहीं यदि मीडिया उनकी बेईमानी की राह में रोड़ा न बन जाए तो देश के महत्वपूर्ण संस्थान और ऐतिहासिक इमारतें भी वह अपने नाम करा लें। लूट-खसोट और मार-काट का उनका सिलसिला शायद अंतहीन हो जाए। ऐसे में अनगिनत अरुषी और शीलू दरिंदगी का शिकार हो सकती हैं।
अब जबकि हम गणतंत्र दिवस मनाने जा रहे हैं ऐसे में आडंबर और दूसरों को नसीहत देने की बजाए खुद के बारे में सोचें। यदि हम स्वयं ईमानदार हो जाएं तो दो-चार लोगों को इस राह पर चलने के लिए प्रेरित कर सकते हैं। यदि वह सीधे रास्ते से बात नहीं मान रहे तो जनसूचना अधिकार कानून को हथियार बनाकर उनके विरुद्ध संघर्ष का बिगुल बजाया जा सकता है। आज चुनौतियां ढ़ेर सारी हैं। कहीं आतंकवाद तो कहीं अलगाववाद रोकने की चुनौती है। भुखमरी के साथ ही प्राकृतिक आपदाओं से निबटने की चुनौती लेकिन यदि हम वाकई लोकतंत्र और गणतंत्र में विश्वास करते हैं तो खुद को बुराइयों से बचाना होगा, एक-दूसरे की मदद को हाथ बढ़ाना होगा। तभी वीर शहीदों का सपना पूरा होगा और भारत एक खुशहाल राष्ट्र बन सकेगा। इतना ही नहीं जनप्रतिनिधियों के चयन में भी सावधानी बरतने की जरूरत है। ऐसे लोगों का तिरस्कार होना चाहिए जो समूची व्यवस्था के लिए नासूर बन चुके हैं। अपराधियों और दबंग छवि के लोगों को सबक सिखाना होगा तभी गरीबों, वंचितों व जरूरतमंदों को उनका हक मिल सकेगा। आरक्षण देने के बजाए व्यवस्था में सुधार की जरूरत है जिसमें देश का युवा महती भूमिका निभा सकता है।
जब सीमा पर शहीद होने वाले किसी सैनिक की मां या युवा पत्नी को अलंकरण प्रदान करने के लिए राष्ट्रपति के सामने लाया जाता है तो ऐसा मान लिया जाता है कि उस विशेष क्षण में वह स्त्री सिर्फ गर्व का अनुभव करेगी। इसलिए उसके भावुक हो उठने या रो पड़ने की स्थिति में उसे संभालने के लिए उसके साथ कोई परिजन नहीं होता। सिर्फ अकड़ कर चलते हुए वर्दीधारी सजीले एस्कॉर्ट्स होते हैं। वहां स्टेज पर जाते समय उस असहाय औरत को क्या इस बात की घबराहट नहीं सताती होगी कि उसकी आगे की जिंदगी कैसे कटेगी ? क्या वह अखबारों में आदर्श घोटाले , पीएफ के गबन और मुआवजे के चेक बाउंस होने की खबरें नहीं पढ़ती होगी। वहां स्टेज पर दिए जाने वाले सम्मान से उसका क्या होगा , यदि गांव के सरपंच ने उसका जीना हराम कर रखा हो। यह हमारे गणतंत्र का दूसरा चेहरा है , जो मानता है कि गणतंत्र के उत्सव का अर्थ है स्टेज पर प्रायोजित सम्मान और मशीनी उत्सव। उसमें व्यक्ति और उसकी मानवीय भावनाओं के लिए कोई जगह नहीं है।
सुना है ताड़देव के विक्टोरिया मेमोरियल ब्लाइंड स्कूल और दादर के कमला मेहता ब्लाइंड स्कूल के बच्चे भी इस बार गणतंत्र दिवस की परेड में भाग लेने के लिए प्रयास कर रहे हैं। यह सुन कर मन में सवाल उठा कि हमने आज तक गणतंत्र दिवस परेड में विकलांग नागरिकों और बच्चों को क्यों नहीं शामिल कर रखा था। आखिर रिटायर सैन्यकर्मियों को जीप पर और छोटे बहादुर बच्चों को हाथी पर लेकर तो चलते ही हैं। कोई कह सकता है कि गणतंत्र दिवस पर हम अपनी सुंदर चीजें पेश करते हैं। और विकलांग नागरिकों को सुंदर कह कर तो नहीं प्रस्तुत कर सकते। यह व्यक्ति के दिल की ओछी सोच हो सकती है , कोई राष्ट्र ऐसा कैसे सोच सकता है ? उत्सव का सौंदर्य , यथार्थ को दरकिनार कर नहीं पैदा किया जा सकता। शायद इसी मानसिकता की वजह से एक तरफ जीडीपी बढ़ती है , तो दूसरी ओर भूख से मौतें। हर तरह के लोगों को गणतंत्र के उत्सव में शामिल कर हम दिखा सकते हैं कि यह राष्ट्र अपने प्रत्येक नागरिक को समान महत्व और स्नेह देता है। और हमने उनके लिए कितने तरह के इंतजाम किए हैं।
आप क्या सोचते है .....? आपके विचार आमंत्रित है
अब जबकि हम गणतंत्र दिवस मनाने जा रहे हैं ऐसे में आडंबर और दूसरों को नसीहत देने की बजाए खुद के बारे में सोचें। यदि हम स्वयं ईमानदार हो जाएं तो दो-चार लोगों को इस राह पर चलने के लिए प्रेरित कर सकते हैं। यदि वह सीधे रास्ते से बात नहीं मान रहे तो जनसूचना अधिकार कानून को हथियार बनाकर उनके विरुद्ध संघर्ष का बिगुल बजाया जा सकता है। आज चुनौतियां ढ़ेर सारी हैं। कहीं आतंकवाद तो कहीं अलगाववाद रोकने की चुनौती है। भुखमरी के साथ ही प्राकृतिक आपदाओं से निबटने की चुनौती लेकिन यदि हम वाकई लोकतंत्र और गणतंत्र में विश्वास करते हैं तो खुद को बुराइयों से बचाना होगा, एक-दूसरे की मदद को हाथ बढ़ाना होगा। तभी वीर शहीदों का सपना पूरा होगा और भारत एक खुशहाल राष्ट्र बन सकेगा। इतना ही नहीं जनप्रतिनिधियों के चयन में भी सावधानी बरतने की जरूरत है। ऐसे लोगों का तिरस्कार होना चाहिए जो समूची व्यवस्था के लिए नासूर बन चुके हैं। अपराधियों और दबंग छवि के लोगों को सबक सिखाना होगा तभी गरीबों, वंचितों व जरूरतमंदों को उनका हक मिल सकेगा। आरक्षण देने के बजाए व्यवस्था में सुधार की जरूरत है जिसमें देश का युवा महती भूमिका निभा सकता है।
कुछ बाते गणतंत्र दिवस परेड के सन्दर्भ में ......
हर साल टीवी पर मै दिल्ली में होने वाले गणतंत्र दिवस की परेड देखता हूं। फौजियों की बूटों की ताल से रोंगटे खड़े हो जाते हैं। झांकियों में प्रगति की बानगी देख कर सीना गर्व से फूल जाता है। लेकिन परेड की कुछ बातें समझ में नहीं आतीं। जब सीमा पर शहीद होने वाले किसी सैनिक की मां या युवा पत्नी को अलंकरण प्रदान करने के लिए राष्ट्रपति के सामने लाया जाता है तो ऐसा मान लिया जाता है कि उस विशेष क्षण में वह स्त्री सिर्फ गर्व का अनुभव करेगी। इसलिए उसके भावुक हो उठने या रो पड़ने की स्थिति में उसे संभालने के लिए उसके साथ कोई परिजन नहीं होता। सिर्फ अकड़ कर चलते हुए वर्दीधारी सजीले एस्कॉर्ट्स होते हैं। वहां स्टेज पर जाते समय उस असहाय औरत को क्या इस बात की घबराहट नहीं सताती होगी कि उसकी आगे की जिंदगी कैसे कटेगी ? क्या वह अखबारों में आदर्श घोटाले , पीएफ के गबन और मुआवजे के चेक बाउंस होने की खबरें नहीं पढ़ती होगी। वहां स्टेज पर दिए जाने वाले सम्मान से उसका क्या होगा , यदि गांव के सरपंच ने उसका जीना हराम कर रखा हो। यह हमारे गणतंत्र का दूसरा चेहरा है , जो मानता है कि गणतंत्र के उत्सव का अर्थ है स्टेज पर प्रायोजित सम्मान और मशीनी उत्सव। उसमें व्यक्ति और उसकी मानवीय भावनाओं के लिए कोई जगह नहीं है।
सुना है ताड़देव के विक्टोरिया मेमोरियल ब्लाइंड स्कूल और दादर के कमला मेहता ब्लाइंड स्कूल के बच्चे भी इस बार गणतंत्र दिवस की परेड में भाग लेने के लिए प्रयास कर रहे हैं। यह सुन कर मन में सवाल उठा कि हमने आज तक गणतंत्र दिवस परेड में विकलांग नागरिकों और बच्चों को क्यों नहीं शामिल कर रखा था। आखिर रिटायर सैन्यकर्मियों को जीप पर और छोटे बहादुर बच्चों को हाथी पर लेकर तो चलते ही हैं। कोई कह सकता है कि गणतंत्र दिवस पर हम अपनी सुंदर चीजें पेश करते हैं। और विकलांग नागरिकों को सुंदर कह कर तो नहीं प्रस्तुत कर सकते। यह व्यक्ति के दिल की ओछी सोच हो सकती है , कोई राष्ट्र ऐसा कैसे सोच सकता है ? उत्सव का सौंदर्य , यथार्थ को दरकिनार कर नहीं पैदा किया जा सकता। शायद इसी मानसिकता की वजह से एक तरफ जीडीपी बढ़ती है , तो दूसरी ओर भूख से मौतें। हर तरह के लोगों को गणतंत्र के उत्सव में शामिल कर हम दिखा सकते हैं कि यह राष्ट्र अपने प्रत्येक नागरिक को समान महत्व और स्नेह देता है। और हमने उनके लिए कितने तरह के इंतजाम किए हैं।
आप क्या सोचते है .....? आपके विचार आमंत्रित है
31 comments:
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आपके मन के भीतर जन्मे तमाम प्रश्नों ने मुझे भी व्यथित कर दिया.
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हा प्रतुल जी अब इसका जबाब भी हमें ही ढूँढना होगा
सबसे ज़्यादा ज़रूरी है नोट गिनने की मशीन..... आख़िर घोटालों का रुपया हाथो से तो न्ही गिना जा सकता
शहीद की विधवा की भावनाओं को समझते हुवे परिवार किसी सदस्य को साथ में रहने की इजाज़त देना बेहतर होगा. संबंधित मंत्री और सरकारी विभाग को इस ओर ध्यान देना चाहिए...
धन्यबाद
विकलांग नागरिको को भी जरूर शामिल करना चाहिए
आपने जरूरी मुद्दों पे ध्यान दिया है ..आभार
सपना जी ये कोई बड़ा मुद्दा नहीं है मै तो चाहता हु की इन छोटी छोटी बातो का ध्यान रखकर हमसब और अच्छे से गणतंत्र दिवस मना सकते है
बहुत बढि़या लेख
अजयजी अभिवादन,
बिलकुल ठीक कहा आपने की व्यवस्था में सुधार की जरूरत है जिसमें देश का युवा महती भूमिका निभा सकता है। बधाई.
अजय जी बहुत अच्छा लिखा आपने
एक घटना का जिक्र मैं भी करना चाहूँगा हाल ही में चर्चित पार्टी ने अपने भावी प्रत्याशी घोषित किये जिसमें भावी प्रत्याशी चुने जाने पर इनके समर्थकों ने गोली बारी करके ख़ुशी का इजहार किया,देख कर ताज्जुब हुआ की ये जनता की सेवा करने जा रहे या दबंगई !
happy republic day 2011
पार्थ जी ये दबंग ही लोकतंत्र को लुट तंत्र में बदल रहे है . लेकिन हमें इन्हे वोट नहीं देना चाहिए
"स्टेज पर जाते समय ..... उसकी मानवीय भावनाओं के लिए कोई जगह नहीं है। "
आपने एक शहीद की विधवा का दर्द कितनी सहजता से ब्यान किया है ये वाकई प्रशंसनीय,
ये भी एकदम सच है यदि हम सुधरेंगे तभी एक - और को सुधरने के लिए प्रेरित कर सकेंगें
बहुत बढि़या लेख
आपको भी गणतंत्र दिवस मुबारक
हा दीपक सैनी जी ....
अपने से ही शुरुवात होनी चाहिए
मैं आपके लेखन को आधुनिकता नज़र से देख पाया हूँ. प्रश्नों की झड़ी और सार्थक सोच आपके लेखन में देखने को मिलती है. बहुत बढ़िया.
behtreen.............
Dhanyabaad
fine.........writing
fine.........writing
भूषण जी धन्यबाद
उत्सव का सौंदर्य , यथार्थ को दरकिनार कर नहीं पैदा किया जा सकता। शायद इसी मानसिकता की वजह से एक तरफ जीडीपी बढ़ती है , तो दूसरी ओर भूख से मौतें। हर तरह के लोगों को गणतंत्र के उत्सव में शामिल कर हम दिखा सकते हैं कि यह राष्ट्र अपने प्रत्येक नागरिक को समान महत्व और स्नेह देता है।
शानदार लेख !
थोडा लेट हु पर .....आपको भी गणतंत्र दिवस की शुभकामनाये !
विधवा का दर्द.........
जी हा जरूर इस ओर सम्बंधित विभाग को ध्यान दें चाहिए
सुन्दर लेख
happy republic day
इस बार विकलांगो को मौका मिला कुछ ब्लाइंड बच्चे शामिल हुए थे
शुभ गणतंत्र
@संतोष शर्मा जी
धन्यबाद और नेपाल में मनाये गणतंत्र दिवस आपने ?
@ प्रीती जी
धन्यबाद
बहुत सुन्दर जी ...ऐसे ही लिखते रहिये
आभार
dhanyabaad..
हा इसबार के परेड में कुछ विकलांग बच्चे भी शामिल हुए ...आपको बधाई
जय हिंद
जय हिंद जय भारत
उम्दा लेखनी
good
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