आजकल बहुत चर्चा में आने वाला शब्द 'देशद्रोह' और 'मानवाधिकार'. जिसकी वजह हैं कश्मीरी अलगाववादी, सैयद अली शाह गिलानी ,नक्सलवादी समूह, अरुंधती रॉय और अब विनायक सेन. आइये हम भी इस पर कुछ बात करते है ..
देशद्रोह......??? मानवाधिकार किसके
बहुत सारे बुद्धिजीवी, लेखक ,विचारक ,पत्रकार एवं ब्लोगर इसपर काफी कुछ लिख चुके है।गिलानी की करतूते और अरुंधती के विचार किसी से छुपी नहीं है। ज्यादातर लोगो ने भारत के अलगाववादियों ,नक्सलियों की आलोचना की थी यहाँ तक की गिलानी और रॉय पर तो देशद्रोह का मुकदमा चलाये जाने की वकालत कर चुके है और भारत सरकार ने यह कहकर की इन्हे सस्ती लोकप्रियता मिल जाएगी मुकदमा करने से मना कर दिया था। तब मुझे भी बहुत बुरा लगा था।
पर अब एक और नाम डॉ.विनायक सेन जिन्हें छत्तीसगढ़ की एक निचली अदालत ने देशद्रोही करार दिया है और उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई है। अब वही लेखक और बुद्धिजीवी वर्ग अदालत के इस फैसले की तीखी आलोचना कर रहे है। पर क्यों ???
क्रिश्चन मेडिकल कॉलेज से शिक्षा प्राप्त विनायक सेन के बारे में लिखते हुए अभी फ्रांसीसी नागरिक फ्रान्क्वा ग्रोशिये की किताब ‘ भारत में आत्महीनता की भावना ’ की कुछ पंक्तिया याद आ रही हैं। पुस्तक में ‘ फ्रान्क्वा मदर टेरेसा के सरोकारों पर भी सवाल उठाते दिखते हैं। उनके अनुसार, मदर भले ही कोलकाता के गरीबों की मसीहा रही हों, उनकी सेवा में अपना जीवन समर्पित कर दिया हो, लेकिन भारत की बदहाली, बेबसी के प्रचार को ही उन्होंने अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया। बकौल लेखक, अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर कभी भी टेरेसा को भारत की किसी भी अच्छी बात की चर्चा करते हुए नहीं देखा गया। और फ़िर लेखक की बात आगे धर्मांतरण तक जाती है।
तो सीधी सी बात यह है कि केवल आपकी सेवाधर्मिता ही सबकुछ नहीं होता, आपकी नीयत भी कसौटी पर हर वक्त हुआ करती है। साथ ही आप जिस भी देश में रहें वहां की रीति-नीतियों, तौर-तरीकों, क़ानून व्यवस्थाओं के प्रति सम्मान, दुनिया में अपने राष्ट्र की अच्छी छवि का निर्माण करना भी हमारे कर्तव्यों में शुमार होता है। देशद्रोह के अपराध में छत्तीसगढ़ की एक निचले अदालत में विनायक को उम्र कैद की सज़ा सुनाए जाने और उसके बाद दुनिया भर में प्रायोजित किए जा रहे बवाल के बीच हमें यहां कहने की इजाज़त दीजिए कि मानवाधिकार का पाठ थ्येन-आनमन चौक के हत्यारों वाले देश के माओ से सीखने की हमें ज़रूरत नहीं है। वास्तव में दुनिया में हमारी पहचान एक ऐसे ‘ सॉफ्ट देश ’ के रूप में है/रही है, जो कायरता की हद तक सहिष्णु है। यहां मानवाधिकार हमारी संस्कृति है।
पहली बात यह कि किसी एक आरोपी के लिए इतना हाय-तोब्बा मचाया जाना उचित है? ऐसे फैसले तो इस देश में रोज होते हैं। बहुत सारे फैसले ऊपरी अदालतों में जा कर पलट भी जाते हैं। लेकिन इतनी-सी बात के कारण हम देश की न्याय प्रणाली को ही कठघरे में खड़े कर दें? विनायक सेन के पास तो फ़िर भी वकीलों, पूर्व जजों, प्रॉपगैंडाबाजों की फौज है। इतनी न्यायिक प्रक्रियाओं से तो देश के एक सुविधाहीन आम आदमी को भी गुजरना पड़ता है। लेकिन न्याय का अपना तरीका है, वह अपने ही हिसाब से चलेगी। यह किसी भी व्यक्ति के लिए तो बदलने से रही।
फिर दूसरा सवाल यह आता है कि क्या वास्तव में विनायक इतने बड़े नायक हैं जिनके विरुद्ध एक फैसला पर दुनिया भर में देश को बदनाम कर इसे अंतर्राष्ट्रीय मुद्दा बना दिया जाए? जबाब है बिलकुल नहीं। चूंकि यहां पर एक रस्म चली है कि अगर आपका कोई कदम देश के खिलाफ हो तो आप हाथों हाथ लिए जाएंगे, अगर आप भारत को गाली दे सकते हों तो आपकी मामूली चीज़ों को भी देवता बना दिया जाएगा। बस केवल इसीलिए विनायाकवादी यहां नायकत्व का झांसा देते दिखते हैं। इस रस्म की अदायगी में अभी एक लेखक ने सेन की तुलना महात्मा गांधी से कर दी। सोच कर अपना सर ही पीट सकता है कि गुलामी के समय में भी सशक्त क्रांति का विरोध करने वाले महामानव की तुलना एक ऐसे व्यक्ति से की जाए जिसे हिंसक संगठनों को बढ़ाबा देने के अपराध में उम्र कैद की सज़ा सुनाई गई है।
सवाल यह है कि अगर आपने कुछ मुट्ठी भर समूहों को अपनी सेवाओं के द्वारा अपना मुरीद भी बना लिया हो तो भी आपको क्या राष्ट्र को ललकारने की इजाज़त दे दी जाए?
अभी हाल में आई एक रिपोर्ट जो कर्नाटक के वीरप्पन के प्रभाव वाले क्षेत्र रहे बांदीपुर अभयारण्य के आसपास के क्षेत्र के लोगो से वार्ता पे आधारित है। इसमे वीरप्पन के प्रति लोगों का आदर सुन कर ताज्जुब हुआ। बताया गया है की वीरप्पन के बारे में कुछ टिका-टिप्पणी करने पर लोगो की लानत झेलनी पड़ी थी।तो क्या उस समर्थन के बदौलत हम वीरप्पन को मसीहा मान लें? हालाकि वीरप्पन ने कभी किसी विचारधारा के लिए काम करने का दावा नहीं किया। विचारधारा की चादर ओढ़कर पूजिवादियों की लेवी पर ही आश्रित नक्सलियों के समर्थक होने का आरोप जिन पर साबित हुआ है उन्हें हम क्या कहें? बात केवल इतनी है कि कुछ समूह इकतरफा झूठ फैला कर चाहे दुनिया भर में देश को बदनाम करें, लेकिन हिंसा या उसका समर्थन करने की ज़रूरत इन्हें पड़ती ही इसलिए है क्योंकि इनके पास तर्क नहीं होते।
आप उनसे पूछ कर देखिए (जैसा कि श्रीमती एलीना सेन से एक पत्रकार ने फैसले के दिन पूछा था) कि एक शिशु रोग विशेषज्ञ को ' बुजुर्ग ' नक्सल पोलित ब्यूरो सदस्य सान्याल का इलाज़ करने के लिए 33 बार उनसे जेल में मिलने की ज़रूरत क्यों होती है? तो बौखला कर ये अग्निवेश की तरह समूचे मीडिया को ही बिका हुआ साबित करना शुरू कर देंगे। सवाल यह है कि अगर आपको सेवा ही करना है तो वो करने से रोका किसने है? विनायक का सेवा या उनका योगदान क्या बाबा आमटे और उनके लोगों द्वारा किये जा रहे कार्यों का पासंग भी है? चित्रकूट में जा कर नाना जी देशमुख द्वारा स्थापित प्रकल्प देख आइए, बाबा रामदेव के आंदोलनों पर नज़र डालिए, गायत्री परिवार के कामों को देखिये, पानी बचाने वाले राजेंद्र जी पर गौर कीजिए, एक गांव को ही स्वर्ग बना देने वाले अन्ना हजारे जी को याद कीजिए. इस तरह के सैकड़ों संगठन हैं जिन्हें अपनी शानदार उपलब्धि के लिए नक्सलियों को उकसाने की ज़रूरत नही पडी।
उसी बस्तर या उड़ीसा या ऐसे ही आदिवासी क्षेत्रों में बिना किसी श्रेय की इच्छा किए संघ के विभिन्न संगठनों को काम करते देखिए। वो तो बिना किसी ‘ जोनाथन अवॉर्ड ’ की कामना के अपना काम बदस्तूर संपादित करते रहते हैं। उन्हें मालूम है कि आत्मसंतोष के अलावा उन्हें कुछ नहीं मिलना। बात चाहे रामकृष्ण मिशन आश्रम की हो या फिर जांजगीर में कुष्ठ आश्रम चलाने वाले संगठन की। इनकी सेवाओं के आगे आपको विनायक जैसे लोग बौने ही दिखेंगे। लेकिन चूंकि यह कुछ लोगों को मालूम है कि लोकतंत्र को गाली दो तो सारी शोहरत आपके क़दमों में होगी। कुछ-कुछ उसी तरह जैसे सैकड़ों महान लेखक, साहित्य को समृद्ध करते मर गए लेकिन गाली देने की कुव्वत हो तो एक किताब की बदौलत अरुंधति विश्वविख्यात लेखिका हो जाती हैं।
आप मानवाधिकार हनन का दुष्प्रचार करते हैं लेकिन सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त कमिटी बस्तर आती है और उसको ऐसे कोई सबूत नहीं मिलते। आप जन समर्थन की बात करते हैं लेकिन सभी प्रभावित क्षेत्रों में नक्सल फरमान के बावजूद शहरों से ज्यादा मतदान होता है और लोकतंत्र जीत जाता है। जाहिर है दुनिया भर में साख प्राप्त देश का चुनाव आयोग खास कर ईवीएम के ज़माने में खुद ही तो नहीं वोट डाल देगा? तो देश की सभी प्रणाली गलत ? हर वो चीज़ गलत जो इनके अनुरूप न हो भले ही वह विभिन्न मानकों पर तैयार की गई, विभिन्न तथ्यों पर कसी गई हो। ज़मानत मिल जाए तो कोर्ट सही, सज़ा दे दे तो गलत। इनकी प्रेस विज्ञप्तियों को अखबार अपना लीड बनाते रहे तो ठीक लेकिन अगर असहज सवाल खड़े कर दे तो बिकाऊ। इनके लोग हत्या करें तो ठीक पुलिस कारवाई करे तो मानवाधिकार हनन।
मै इस ब्लॉग के माध्यम से डॉ. सेन के समर्थको से पूछता हु कि आप लोगों ने विनायक सेन के काफ़ी तारीफ कर दी और अगर हम आप के बात को सच मान भी लें .पर कोई पागल ही होगा जो एक सेवा करने वाले इंसान को जेल में बंद कर दे ,वो भी एंटी नैशनल एलिमेंट होने के नाते. और अगर आप का विश्वास इतना ही सच्चा है तो अभी तो सज़ा लोवर कोर्ट से हुई है, अभी तो हाई कोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट बचा हुआ है। वैसे जनता के सामने सारे मानवाधिकारी लोगो की असलियत है। लेकिन इस तरह से छोटे कोर्ट के फैसले पर कोर्ट पर इतना प्रेशर बनाना.. दाल में कुछ काला होने का संकेत देता है।
इनके कुतर्कों के खिलाफ तथ्यों की कमी नहीं है। जहां तक इस फैसले का सवाल है तो निश्चित ही जो भी सच होगा वो सुप्रीम कोर्ट तक से छन कर आ ही जाएगा। बस इस मौके पर इतना ही कहना समीचीन होगा कि लाख कमियों के बावजूद हमारे लोकतंत्र और उसके विभिन्न अंगों में पर्याप्त ताकत है कि वह विडंबना से पार पाए। बुराइयां जितनी हो लेकिन हमें अपना समाधान इसी तंत्र में तलाशना है। यहां के लोकतंत्र को हिटलर के चश्मे से देखने वालों की नज़र ठीक कर देने के लिए विधि द्वारा जो भी प्रक्रिया अपनायी जाय वो सही है। कोई लाख चिल्लाये लेकिन आज की तारीख में हमारी प्रणाली द्वारा अपराधी साबित हुए विनायक हमारे नायक नहीं हो सकते।
आप कि प्रतिक्रियाये आमंत्रित है - अजय दुबे
देशद्रोह......??? मानवाधिकार किसके
बहुत सारे बुद्धिजीवी, लेखक ,विचारक ,पत्रकार एवं ब्लोगर इसपर काफी कुछ लिख चुके है।गिलानी की करतूते और अरुंधती के विचार किसी से छुपी नहीं है। ज्यादातर लोगो ने भारत के अलगाववादियों ,नक्सलियों की आलोचना की थी यहाँ तक की गिलानी और रॉय पर तो देशद्रोह का मुकदमा चलाये जाने की वकालत कर चुके है और भारत सरकार ने यह कहकर की इन्हे सस्ती लोकप्रियता मिल जाएगी मुकदमा करने से मना कर दिया था। तब मुझे भी बहुत बुरा लगा था।
पर अब एक और नाम डॉ.विनायक सेन जिन्हें छत्तीसगढ़ की एक निचली अदालत ने देशद्रोही करार दिया है और उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई है। अब वही लेखक और बुद्धिजीवी वर्ग अदालत के इस फैसले की तीखी आलोचना कर रहे है। पर क्यों ???
क्रिश्चन मेडिकल कॉलेज से शिक्षा प्राप्त विनायक सेन के बारे में लिखते हुए अभी फ्रांसीसी नागरिक फ्रान्क्वा ग्रोशिये की किताब ‘ भारत में आत्महीनता की भावना ’ की कुछ पंक्तिया याद आ रही हैं। पुस्तक में ‘ फ्रान्क्वा मदर टेरेसा के सरोकारों पर भी सवाल उठाते दिखते हैं। उनके अनुसार, मदर भले ही कोलकाता के गरीबों की मसीहा रही हों, उनकी सेवा में अपना जीवन समर्पित कर दिया हो, लेकिन भारत की बदहाली, बेबसी के प्रचार को ही उन्होंने अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया। बकौल लेखक, अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर कभी भी टेरेसा को भारत की किसी भी अच्छी बात की चर्चा करते हुए नहीं देखा गया। और फ़िर लेखक की बात आगे धर्मांतरण तक जाती है।
तो सीधी सी बात यह है कि केवल आपकी सेवाधर्मिता ही सबकुछ नहीं होता, आपकी नीयत भी कसौटी पर हर वक्त हुआ करती है। साथ ही आप जिस भी देश में रहें वहां की रीति-नीतियों, तौर-तरीकों, क़ानून व्यवस्थाओं के प्रति सम्मान, दुनिया में अपने राष्ट्र की अच्छी छवि का निर्माण करना भी हमारे कर्तव्यों में शुमार होता है। देशद्रोह के अपराध में छत्तीसगढ़ की एक निचले अदालत में विनायक को उम्र कैद की सज़ा सुनाए जाने और उसके बाद दुनिया भर में प्रायोजित किए जा रहे बवाल के बीच हमें यहां कहने की इजाज़त दीजिए कि मानवाधिकार का पाठ थ्येन-आनमन चौक के हत्यारों वाले देश के माओ से सीखने की हमें ज़रूरत नहीं है। वास्तव में दुनिया में हमारी पहचान एक ऐसे ‘ सॉफ्ट देश ’ के रूप में है/रही है, जो कायरता की हद तक सहिष्णु है। यहां मानवाधिकार हमारी संस्कृति है।
पहली बात यह कि किसी एक आरोपी के लिए इतना हाय-तोब्बा मचाया जाना उचित है? ऐसे फैसले तो इस देश में रोज होते हैं। बहुत सारे फैसले ऊपरी अदालतों में जा कर पलट भी जाते हैं। लेकिन इतनी-सी बात के कारण हम देश की न्याय प्रणाली को ही कठघरे में खड़े कर दें? विनायक सेन के पास तो फ़िर भी वकीलों, पूर्व जजों, प्रॉपगैंडाबाजों की फौज है। इतनी न्यायिक प्रक्रियाओं से तो देश के एक सुविधाहीन आम आदमी को भी गुजरना पड़ता है। लेकिन न्याय का अपना तरीका है, वह अपने ही हिसाब से चलेगी। यह किसी भी व्यक्ति के लिए तो बदलने से रही।
फिर दूसरा सवाल यह आता है कि क्या वास्तव में विनायक इतने बड़े नायक हैं जिनके विरुद्ध एक फैसला पर दुनिया भर में देश को बदनाम कर इसे अंतर्राष्ट्रीय मुद्दा बना दिया जाए? जबाब है बिलकुल नहीं। चूंकि यहां पर एक रस्म चली है कि अगर आपका कोई कदम देश के खिलाफ हो तो आप हाथों हाथ लिए जाएंगे, अगर आप भारत को गाली दे सकते हों तो आपकी मामूली चीज़ों को भी देवता बना दिया जाएगा। बस केवल इसीलिए विनायाकवादी यहां नायकत्व का झांसा देते दिखते हैं। इस रस्म की अदायगी में अभी एक लेखक ने सेन की तुलना महात्मा गांधी से कर दी। सोच कर अपना सर ही पीट सकता है कि गुलामी के समय में भी सशक्त क्रांति का विरोध करने वाले महामानव की तुलना एक ऐसे व्यक्ति से की जाए जिसे हिंसक संगठनों को बढ़ाबा देने के अपराध में उम्र कैद की सज़ा सुनाई गई है।
सवाल यह है कि अगर आपने कुछ मुट्ठी भर समूहों को अपनी सेवाओं के द्वारा अपना मुरीद भी बना लिया हो तो भी आपको क्या राष्ट्र को ललकारने की इजाज़त दे दी जाए?
अभी हाल में आई एक रिपोर्ट जो कर्नाटक के वीरप्पन के प्रभाव वाले क्षेत्र रहे बांदीपुर अभयारण्य के आसपास के क्षेत्र के लोगो से वार्ता पे आधारित है। इसमे वीरप्पन के प्रति लोगों का आदर सुन कर ताज्जुब हुआ। बताया गया है की वीरप्पन के बारे में कुछ टिका-टिप्पणी करने पर लोगो की लानत झेलनी पड़ी थी।तो क्या उस समर्थन के बदौलत हम वीरप्पन को मसीहा मान लें? हालाकि वीरप्पन ने कभी किसी विचारधारा के लिए काम करने का दावा नहीं किया। विचारधारा की चादर ओढ़कर पूजिवादियों की लेवी पर ही आश्रित नक्सलियों के समर्थक होने का आरोप जिन पर साबित हुआ है उन्हें हम क्या कहें? बात केवल इतनी है कि कुछ समूह इकतरफा झूठ फैला कर चाहे दुनिया भर में देश को बदनाम करें, लेकिन हिंसा या उसका समर्थन करने की ज़रूरत इन्हें पड़ती ही इसलिए है क्योंकि इनके पास तर्क नहीं होते।
आप उनसे पूछ कर देखिए (जैसा कि श्रीमती एलीना सेन से एक पत्रकार ने फैसले के दिन पूछा था) कि एक शिशु रोग विशेषज्ञ को ' बुजुर्ग ' नक्सल पोलित ब्यूरो सदस्य सान्याल का इलाज़ करने के लिए 33 बार उनसे जेल में मिलने की ज़रूरत क्यों होती है? तो बौखला कर ये अग्निवेश की तरह समूचे मीडिया को ही बिका हुआ साबित करना शुरू कर देंगे। सवाल यह है कि अगर आपको सेवा ही करना है तो वो करने से रोका किसने है? विनायक का सेवा या उनका योगदान क्या बाबा आमटे और उनके लोगों द्वारा किये जा रहे कार्यों का पासंग भी है? चित्रकूट में जा कर नाना जी देशमुख द्वारा स्थापित प्रकल्प देख आइए, बाबा रामदेव के आंदोलनों पर नज़र डालिए, गायत्री परिवार के कामों को देखिये, पानी बचाने वाले राजेंद्र जी पर गौर कीजिए, एक गांव को ही स्वर्ग बना देने वाले अन्ना हजारे जी को याद कीजिए. इस तरह के सैकड़ों संगठन हैं जिन्हें अपनी शानदार उपलब्धि के लिए नक्सलियों को उकसाने की ज़रूरत नही पडी।
उसी बस्तर या उड़ीसा या ऐसे ही आदिवासी क्षेत्रों में बिना किसी श्रेय की इच्छा किए संघ के विभिन्न संगठनों को काम करते देखिए। वो तो बिना किसी ‘ जोनाथन अवॉर्ड ’ की कामना के अपना काम बदस्तूर संपादित करते रहते हैं। उन्हें मालूम है कि आत्मसंतोष के अलावा उन्हें कुछ नहीं मिलना। बात चाहे रामकृष्ण मिशन आश्रम की हो या फिर जांजगीर में कुष्ठ आश्रम चलाने वाले संगठन की। इनकी सेवाओं के आगे आपको विनायक जैसे लोग बौने ही दिखेंगे। लेकिन चूंकि यह कुछ लोगों को मालूम है कि लोकतंत्र को गाली दो तो सारी शोहरत आपके क़दमों में होगी। कुछ-कुछ उसी तरह जैसे सैकड़ों महान लेखक, साहित्य को समृद्ध करते मर गए लेकिन गाली देने की कुव्वत हो तो एक किताब की बदौलत अरुंधति विश्वविख्यात लेखिका हो जाती हैं।
आप मानवाधिकार हनन का दुष्प्रचार करते हैं लेकिन सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त कमिटी बस्तर आती है और उसको ऐसे कोई सबूत नहीं मिलते। आप जन समर्थन की बात करते हैं लेकिन सभी प्रभावित क्षेत्रों में नक्सल फरमान के बावजूद शहरों से ज्यादा मतदान होता है और लोकतंत्र जीत जाता है। जाहिर है दुनिया भर में साख प्राप्त देश का चुनाव आयोग खास कर ईवीएम के ज़माने में खुद ही तो नहीं वोट डाल देगा? तो देश की सभी प्रणाली गलत ? हर वो चीज़ गलत जो इनके अनुरूप न हो भले ही वह विभिन्न मानकों पर तैयार की गई, विभिन्न तथ्यों पर कसी गई हो। ज़मानत मिल जाए तो कोर्ट सही, सज़ा दे दे तो गलत। इनकी प्रेस विज्ञप्तियों को अखबार अपना लीड बनाते रहे तो ठीक लेकिन अगर असहज सवाल खड़े कर दे तो बिकाऊ। इनके लोग हत्या करें तो ठीक पुलिस कारवाई करे तो मानवाधिकार हनन।
मै इस ब्लॉग के माध्यम से डॉ. सेन के समर्थको से पूछता हु कि आप लोगों ने विनायक सेन के काफ़ी तारीफ कर दी और अगर हम आप के बात को सच मान भी लें .पर कोई पागल ही होगा जो एक सेवा करने वाले इंसान को जेल में बंद कर दे ,वो भी एंटी नैशनल एलिमेंट होने के नाते. और अगर आप का विश्वास इतना ही सच्चा है तो अभी तो सज़ा लोवर कोर्ट से हुई है, अभी तो हाई कोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट बचा हुआ है। वैसे जनता के सामने सारे मानवाधिकारी लोगो की असलियत है। लेकिन इस तरह से छोटे कोर्ट के फैसले पर कोर्ट पर इतना प्रेशर बनाना.. दाल में कुछ काला होने का संकेत देता है।
इनके कुतर्कों के खिलाफ तथ्यों की कमी नहीं है। जहां तक इस फैसले का सवाल है तो निश्चित ही जो भी सच होगा वो सुप्रीम कोर्ट तक से छन कर आ ही जाएगा। बस इस मौके पर इतना ही कहना समीचीन होगा कि लाख कमियों के बावजूद हमारे लोकतंत्र और उसके विभिन्न अंगों में पर्याप्त ताकत है कि वह विडंबना से पार पाए। बुराइयां जितनी हो लेकिन हमें अपना समाधान इसी तंत्र में तलाशना है। यहां के लोकतंत्र को हिटलर के चश्मे से देखने वालों की नज़र ठीक कर देने के लिए विधि द्वारा जो भी प्रक्रिया अपनायी जाय वो सही है। कोई लाख चिल्लाये लेकिन आज की तारीख में हमारी प्रणाली द्वारा अपराधी साबित हुए विनायक हमारे नायक नहीं हो सकते।
आप कि प्रतिक्रियाये आमंत्रित है - अजय दुबे
34 comments:
पर किसी के सही काम का समर्थन करना गलत है क्या ? जबकि वे तो एक बाल-रोग विशेषज्ञ तथा मानवाधिकार कार्यकर्ता भी हैं।
डॉ सेन ने शहीदी अस्पताल की नीव रक्खी जिसमे कितनो का इलाज़ होता है यही है उनके कर्मो की सजा ????
बेनामी महोदय!
डाक्टर विनायक सेन को इन कारण से (जिनका आपने जिक्र किया है) दंड नही मिला है.इसके लिए तो उन्हें 'जोनाथन मान'पुरस्कार भी मिल चूका है.ये जानने की बात है कि उन्हे न्यायालय से इसलिए दंड मिला है की नक्सली हिंसा , और , घोषित अपराधियो को सहयोग करने के सबूत मिले है. मै भी उनका प्रशंसक हू पर आँख मूंद कर नही, जो लोग उनके पक्ष मे बोल रहे है वो फ़ैसले को खुले आम प्रगट नही करते... क्यो ? राजीव गाँधी हत्या कांड मे भी कई लोगो को जेल यहा तक की फाँसी की सज़ा सुनाई गई थी पर.. सुप्रीम कोर्ट से निर्दोष घोषित हुए..पर किसी ने न्यायालय के गरिमा पर आक्षेप नही किया. हज़ारो केस है की जिनमे निचली अदालत मे जेल हुई .. और.. उँचे अदालत.. से निर्दोष घोषित हुए ... फिर विनायक सेन और उनके साथियो को क्या हो गया है ???
सच्चाई क्या है यह कहना बहुत मुश्किल है. कब एक समाज सेवी, आतंकियों का सरमयादार बन जाता है और कब एक आतंकी राष्ट्रवादी बन जाता है कहना बहुत मुश्किल है. किंतु एक बात तो सुनिश्चित है. हिंसा पर उतारू आतंकियों और उनको सहयता पहुँचने वालों के लिए इस देश में कोई स्थान नहीं होना चाहिए., चाहे वे नक्सलाइट हों , कश्मीरी अलगाववादी हों या फिर जेहादी हों.
मीडिया के कुछ वर्गो मे जिस तरह से एक मुहिम सी छेड़ रखी है कि विनायक को महापुरुष साबित करा जाए उसके हिसाब से आपका लेख अच्छा है. कम से कम आपने तस्वीर का दूसरा पहलू भी दिखाया है.
धन्यबाद
हमें यहां कहने की इजाज़त दीजिए कि मानवाधिकार का पाठ थ्येन-आनमन चौक के हत्यारों वाले देश के माओ से सीखने की हमें ज़रूरत नहीं है।
बेहतरीन ...
निश्चित ही हमें आपने तंत्रों पे भरोसा रखना चाहिए
लाजबाब लेख
आभार
फैसले पे संदेह करना जल्दबाजी है वैसे भी हमारी न्याय प्रणाली इतनी आसानी से दोषी नहीं मानती ..और अगर कुछ संदेह हो भी तो अभी अंतिम फैसला हुआ ही कहा है हमारे यहाँ तो अजमल कसाब तक को पूरा मौका दिया जाता है
कोई भी ब्यक्ति न्यायतंत्र से बड़ा नहीं है. अगर विनायक जी निर्दोष होंगे तो जरुर आगे बरी हो जायेंगे ऐसे में जल्दबाजी में ..कानून पे ऊँगली उठाना गलत है
बहुत ही शानदार पोस्ट
आपने तो कामाल की बाते कही है
आपकी लेखनी ऐसे ही बेहतरीन काम करती रहे
शुभकामनाए!
धन्यबाद
इनके लोग हत्या करें तो ठीक पुलिस कारवाई करे तो मानवाधिकार हनन।
जी हा संतोष जी
मीडिया का काम हर चीज़ की सिर्फ आलोचना नहीं होनी चाहिए बल्कि समालोचना करनी चाहिए
कभी तो मीडिया अरुंधती के एक बयान पर देशद्रोही साबित भी करने में लग जाती है और अगर किसी पे साबित हो गया हो तो बजाये न्यायलय पे भरोसा किये आलोचना करने में
धन्य है ये लोग
न्याय व्यवस्था का ऐसा "सलेक्टिव क्रिटिसिज़्म" ठीक नहीं है
@प्रीति जी
सही कही है आपने की हमें आपने तंत्रों पे भरोसा दिखाना होगा
@सपना
हा जरूर अगर वे निर्दोष होंगे तो बरी भी होंगे कितनी बार ये हो चूका है की फैसले बदलते है
आखिर ३ कोर्ट बना ही इसलिए है
आप सभी को धन्यबाद
mai bhi aapse sahmat hu ajay ji
किसी की आलोचना करने से सच्चाई छुप नहीं सकती. भारत में अच्छाई भी है और कमियाँ भी. सही सोच और सही चुनाव से ही देश आगे बढ़ेगा. विनायक सेन को और अधिक सकारात्मक विचार को धारण करना चाहिए.महान बनने की डगर कठिन होती है
अजय जी आपका धन्यबाद
आपने बढ़िया मुद्दों पर चर्चा छेड़ी है. जहाँ तक न्यायाधीन मामलों की बात है अभी कुछ कहना ठीक नहीं. परंतु मदर टेरेसा, हिंदू संगठनों की उड़ीसा में कोढ़ियों की सेवा और विनायक सेन के कार्य की तुलना का कोई साझा आधार रख कर तुलना करें तो बेहतर होगा. अच्छी पोस्ट.
असली देशद्रोही तो आज के नेता है लेकिन साबित करना मुश्किल है सालो को
भूषण जी सबसे पहले आपका आभार
जहा तक तुलना की बात है .... तो मेरा मानना है की किसी के अच्छे और सकारात्मक कार्यो के बदौलत हमे उसके नकारात्मक कार्यो(देशहित के विरुद्ध जैसी संदिग्ध)की अनदेखी नहीं करनी चाहिए.
निश्चय ही अगर वे निर्दोष होंगे तो आगे बरी होंगे परन्तु मुझे तो एतराज एस बात से है की इतना जल्दी हमें आपने न्यायतंत्र से विश्वास नहीं खोना चाहिए और आँख मुंद कर किसी का समर्थन नहीं करना चाहिए
@पार्थ जी आपने सही कहा है
भारत में अच्छाई भी है और कमियाँ भी. सही सोच और सही चुनाव से ही देश आगे बढ़ेगा. विनायक सेन को और अधिक सकारात्मक विचार को धारण करना चाहिए.महान बनने की डगर कठिन होती है
धन्यबाद
बेनामी भाई आपने तो खुद ही आपनी बात का उत्तर भी दे दिया है
very nice post thanx
धन्यबाद राजीव जी
अलग और उम्दा लेखनी
शुक्रिया
हा जरूर दल में कुछ कला है
सहमत हु
.
इस विषय पर बहुत विस्तार से लिख चुकी हूँ। एक नज़र डालियेगा।
http://zealzen.blogspot.com/2011/01/dr-binayak-sen-prisnor-of-conscience.html
.
अगर हम आप के बात को सच मान भी लें .पर कोई पागल ही होगा जो एक सेवा करने वाले इंसान को जेल में बंद कर दे ,वो भी एंटी नैशनल एलिमेंट होने के नाते. और अगर आप का विश्वास इतना ही सच्चा है तो अभी तो सज़ा लोवर कोर्ट से हुई है, अभी तो हाई कोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट बचा हुआ है।
पर इतना जल्दी में आपने न्यायतंत्र में ऊँगली उठाना ठीक नहीं मैंने आपने ब्लॉग पे इसके दुसरे पहलु को उजागर करने की कोशिस की है
अगर आप सही है भी तो भी मै विनायक सेन को तब तक नायक नहीं मान सकता जबतक हमारी प्रणाली उन्हें बरी न कर दे
मै भी विनायक सेन के सकारात्मक काम की तारीफ कर सकता हु पर उनके नकारात्मक कामो (जैसा की कोर्ट ने माना है )की अनदेखी नहीं कर सकता
आप ही बताइए ...हमें सबसे पहले किसपे भरोसा करना चाहिए ...
हमारे यहाँ ३ कोर्ट किस लिए बने है ??
इसलिए की पहले ही फैसले में लोग आपने तंत्र पे बिस्वास खो दे ??
एक बात और आपने कुछ कॉमेंट्स में दागी नेताओ की बात कही है
उससे मै भी सहमत हु की वो भी गलत नेता है पर इसका मतलब ये नहीं की इन नेताओ के आलावा और कोई गलत नहीं हो सकता
और इन्हे सजा मिलने के बाद उन्हें दोषी माना जाये न्यायतंत्र ऐसे काम नहीं करता ....दूसरो के दोष से आपना दोष नहीं छुपाया जा सकता
किसी एक आरोपी के लिए इतना हाय-तोब्बा मचाया जाना उचित है? ऐसे फैसले तो इस देश में रोज होते हैं। बहुत सारे फैसले ऊपरी अदालतों में जा कर पलट भी जाते हैं। लेकिन इतनी-सी बात के कारण हम देश की न्याय प्रणाली को ही कठघरे में खड़े कर दें? विनायक सेन के पास तो फ़िर भी वकीलों, पूर्व जजों, प्रॉपगैंडाबाजों की फौज है। इतनी न्यायिक प्रक्रियाओं से तो देश के एक सुविधाहीन आम आदमी को भी गुजरना पड़ता है। लेकिन न्याय का अपना तरीका है, वह अपने ही हिसाब से चलेगी।
खैर ये तो मेरा विचार था आप जो समझे ....
अगर डॉ. सेन सही होंगे तो बरी होंगे ही ...तब भी मुझे आपने तंत्र पे विश्वास रहेगा ...तब तक आपको और डॉ. सेन को और सकारात्मक बने रहना चाहिए
लेकिन आज की तारीख में हमारी प्रणाली द्वारा अपराधी साबित हुए विनायक हमारे नायक नहीं हो सकते।
दिव्या जी चर्चा के लिए धन्यबाद
vinayak nirdosh hai....desh ke dusman ye gandhi naam wale hai jo mahatma gandhi ke naam ko kharab kar rahe hai
agar court me dum hai to enko saza deke dikhaye
kamsekam vinayak sen in bhrast netao se to achhe hi hai
बहुत सुन्दर दुबे जी विचारणीय विषय
बहुत बहुत धन्यवाद
इससे अपराधियों को सह मिलता है
डॉ. सेन फ़िलहाल देश का मुजरिम है अभी उसका साथ देना भी जुल्म ही है
आपने अच्छा विचार रक्खा है .thanx
धन्यबाद दीपक
good
कौशलेन्द्र जी आपका बहुत बहुत आभार
behtreen post
thanx
अंजाम देखा आपने
हुस्ने मुबारक का
था मिस्र का भी वही
जो है हाल भारत का
परजीवियों के राज का
तख्ता पलट कर दो
जन में नई क्रांति का
जोश अब भर दो
उठो आओ हिम्मत करो
क्रांति का परचम धरो
मत भूलो यह सरोकार
अच्छा है मानवाधिकार
राजेश सिंह
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