दूसरी सहस्राब्दी के दूसरे दशक की शुरुआत आप सबको मुबारक हो!
अब से दस वर्ष पूर्व हम सब एक इतिहास का हिस्सा बने. हमें वह श्रेय हासिल हुआ जो हमारे पूर्वजों और हमारी आने वाली कई नस्लों को नहीं मिलेगा. यानी एक सहस्राब्दी से निकल कर दूसरी सहस्राब्दी में प्रवेश.
आगे आने वाली पीढ़ियाँ शायद हमारा नाम न जान पाएँ लेकिन हम यदि वर्ष 2000 से पहले जन्मे हैं तो हमारा शुमार उन लोगों में ज़रूर है जो विलक्षण हैं, यानी इतिहास बदलता देख चुके हैं.
क्या हम अगली नस्ल को एक ऐसे विश्व की धरोहर दे कर जाएँगे जहाँ हिंसा न हो, जातीय और नस्ली भेदभाव न हों, बीमारियाँ न हों और न ही हो विद्वेष और बदले की भावना.
आप कहेंगे यह हमारा काम नहीं है और न ही हमारे बस में है.
मेरा कहना है यदि हममें से हर एक अपने आसपास का माहौल सुधार सके, अपने परिवार में यह बीज बो सके जो आगे चल कर एक फलदायक पेड़ का रूप ले ले तो यह काम कोई मुश्किल नहीं है.
इस ब्लाग के माध्यम से मेरा आपसे अपील है कि आज एक संकल्प कीजिए.
दूसरी सहस्राब्दी का दूसरा दशक आप संवारेंगे. जहाँ तक हो सकेगा इसमें हाथ बंटाएँगे. अपने को कमतर नहीं समझेंगे और इस बात को पहचानेंगे कि यह देश, यह दुनिया आपकी है और आप इसे रहने लायक़ बनाने की क्षमता रखते हैं.
क्या आप वह दिन ला पाएँगे जब हमारी नई पीढ़ियाँ पूछें कि बेईमानी, भ्रष्टाचार, रिश्वतख़ोरी, झूठ, लालच और धोखाधड़ी किस चिड़िया का नाम है?
आप वह दिन ला सकते हैं. आप बहुत कुछ कर सकते हैं!
नव दशक की शुभकामनाएँ!
आपसभी का विचार आमंत्रित है- अजय कुमार दुबे
35 comments:
Very good thoughts...welcome to Blogging World. Where r u from???
गोपाल जी बहुत बहुत धन्यवाद.हा ये मेरा पहला ब्लॉग है. मै कोई लेखक नहीं हु.बस सोचा इसी बहाने आप जैसे मित्रो का साथ मिल सकेगा और अपनी मातृभाषा हिंदी की थोड़ी सेवा करने का अवसर भी मिल जायेगा
आपने सही कहा शुरुआत हमें ही करनी चाहिए ......अच्छा विचार ....
धन्यवाद एवं आभार
आपके अगले पोस्ट का इंतज़ार रहेगा
......
very nice.....aapko bhi mubarak
संतोष जी यहाँ पधारने के लिए आभार
@ सपना जी आपको भी शुक्रिया
अच्छा लग रहा है जो आपने ब्लॉग लिखना शुरू कर दिया ,अब आपके विचार से रूबरू होते रहने का मौका मिलता रहेगा
शुभकामनाए!
बंधू ख्याल अच्छा है आपका
पर संकल्प लेना जरा मुश्किल है
एक सहस्राब्दी से निकल कर दूसरी सहस्राब्दी में प्रवेश.
सच में क्या बेहतरीन बात कही है आपने... बहुत बढ़िया
आपने तो हमलोगों को विलक्षण ही बता दिया ...हेहेहेहे
दशक और शतक तो बहुत लोग देख लेते है पैर हजारवा ?????
आज सुखद अनुभव हुआ
भाई जी पर विलक्षण लोगो की जिम्मेदारी भी बढ़ जाती है
कुछ विलक्षण करना भी चाहिए क्यों ?
हा प्रयास तो करते ही रहना चाहिए
चाहे कुछ भी हो बेईमानी, भ्रष्टाचार, रिश्वतख़ोरी इस देश से नहीं मिटनेवाली है अब
बहुत सुन्दर पोस्ट .... धन्यबाद
आपलोगों को हमारे प्रथम ब्लॉग पोस्ट पे पधारने के लिए बहुत बहुत धन्यबाद
एक अच्छी सोच के साथ आपने ब्लॉग जगत में कदम रखा है.आपकी यह सोच बनी रहे और प्रभावशाली लेखनी अपना फ़र्ज़ निभाती रहे.
बहुत स्वागत है आपका.और ढेर सारी शुभकामनाये.
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क्या आप वह दिन ला पाएँगे जब हमारी नई पीढ़ियाँ पूछें कि बेईमानी, भ्रष्टाचार, रिश्वतख़ोरी, झूठ, लालच और धोखाधड़ी किस चिड़िया का नाम है?
@ इस प्रश्न को आने वाली पीढी हमसे पूछे इसका ही प्रयास रहता है. आप भी अपनी सोच के हैं लगा एक भाई हमारे कुनबे में बढ़ गया.
ब्लॉग जगत में आपकी प्रेरक पोस्टों का इंतजार रहेगा. शुभकामनाएँ.
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शिखा जी आपका उत्साहवर्धन मेरे लिए बहुत महत्वपूर्ण है
आभार
क्या आप वह दिन ला पाएँगे जब हमारी नई पीढ़ियाँ पूछें कि बेईमानी, भ्रष्टाचार, रिश्वतख़ोरी, झूठ, लालच और धोखाधड़ी किस चिड़िया का नाम है?
....अमरबेल है यह फिर भी उम्मीद पर दुनिया कायम है.....कभी न कभी वह दिन जरुर आएगा, वो कहते हैं न अति सर्वत्र वर्जयेते!.....
बहुत सार्थक प्रस्तुति
नव वर्ष की हार्दिक शुभकामना
प्रतुल जी आपका भी बहुत बहुत स्वागत और आभार
आखिर प्रयास से ही तो संकल्प पुरे होते है
कविता जी हम सभी इस सार्थक प्रस्तुति को सार्थक प्रयास में भी तो बदल सकते है
आप को यहाँ पधारने के लिए बहुत बहुत धन्यबाद
काफी अच्छा लिखे हो भाई
आपको भी नव दशक की शुभकामना
धन्यबाद
सद्भावनाओं के साथ आपने शुरूआत की है. आपके लिए मंगलकामनाएँ.
ऊर्जा से भरपूर यह लेख बहुत अच्छा लगा। हम भी आपके साथ यह संकल्प दोहराते हैं।
ब्लॉग जगत में आपका स्वागत है।
बहुत ही अच्छा लेख
शुभकामनाए
धन्यवाद
भूषण जी एवं दिव्याजी आप लोग को मेरा हार्दिक धन्यवाद
अब से दस वर्ष पूर्व हम सब एक इतिहास का हिस्सा बने. हमें वह श्रेय हासिल हुआ जो हमारे पूर्वजों और हमारी आने वाली कई नस्लों को नहीं मिलेगा. यानी एक सहस्राब्दी से निकल कर दूसरी सहस्राब्दी में प्रवेश.
क्या बेहतरीन बात कही है आपने
बहुत ही सुन्दर
हमें संकल्प लेके अब सार्थक प्रयास में लग जानी चाहिए
thanks
आपको कोटिशः बधाई आपके इस नए और पहले ब्लॉग के लिए
आपने सही कहा यह बहुत बिलक्षण अनुभूति है की हम लोग नयी सहस्त्राब्दी को आते हुए देखे जो की हामारे पूर्वजो और आने वाली पीढ़ी को शायद नसीब न हो.......
हम लोगो को संकल्प लेना चाहिए की आने वाला कल को या अपने नए आने वाले नस्लों को हिंसा मुक्त और एक दुसरे के प्रति सहयोग की भावना को विकसित करें यह संकल्प लेना थोडा मुश्किल है लेकिन नामुमकिन नहीं.
लिखने को बहुत है लेकिन समझदार के लिए इतना ही काफी है |
आप वाकई बहुत बढ़ायी के पात्र है की आपने इतने अछे विचारों के साथ अपने ब्लॉग की शुरुआत की हमें आशा है आगे भी आप नए नए विचारों का समावेश करते रहेंगे ......... धन्यवाद् .
अनिल जी आप के उम्मीदों पे खरा उतरने का हमेशा प्रयास करता रहूँगा
आपका आभार
क्या बात है गुरु
लगे रहिए...बढ़िया
मेरा कहना है यदि हममें से हर एक अपने आसपास का माहौल सुधार सके, अपने परिवार में यह बीज बो सके जो आगे चल कर एक फलदायक पेड़ का रूप ले ले तो यह काम कोई मुश्किल नहीं है.
सही बात
अजय जी ! हम भारतीयों की एक विशेषता है ...बहुत ज़ल्दी द्रवित होकर कोई भी निर्णय कर डालते हैं. मैं जब छोटा था तो अपराधियों को बेरहमी से मारते देख पुलिस वालों को ही अपराधी मान बैठता था ...खूब गुस्सा आता था. विनायक के मामले में भी यही हुआ. एक आभिजात्य वर्गीय व्यक्ति को सलाखों के पीछे देखना हमारे संस्कारों में नहीं है, हम तो आभिजात्य को देखते ही उसकी स्तुतिगान के अभ्यस्त हैं. जमींदारी ज़माने के कुसंस्कार अभी तक छोड़ नहीं पाए हम. हम बिना किसी डिस्क्रिमिनेशन के एक पक्षीय फैसला सुनाने के आदी हो चुके हैं. मैं अति संवेदनशील क्षेत्र बस्तर में हूँ. नक्सलियों का अत्याचार आये दिन देखता हूँ. यहाँ स्कूल और अस्पताल उड़ाये जा रहे हैं, सड़कें खोद डाली जाती हैं, एक मुड़े-तुड़े कागज़ के टुकड़े पर लाल स्याही में लिखा कोई फ़रमान किसी पेड़ के तने पर चस्पा कर दिया जाता है और जगदलपुर विशाखापत्तनम लाइन की ट्रेन के चक्के थम जाते हैं ...एक-एक हफ्ते तक केंद्र सरकार बंधुआ बनी रहती है. एक पैरालल सरकार चल रही है, दहशत के माहौल में जीने के लिए बाध्य हैं लोग. इन्हीं माओवादियों से संपर्क रखना मानवाधिकारियों को कोई गुनाह नहीं लगता. मुठभेड़ की बात को छोड़ दें तो पकडे गए नक्सलियों को एक थप्पड़ मारने की जुर्रत नहीं कर पाते पुलिस वाले. वे जेल में आराम से रहते हैं. मैं यहाँ १९९१ से हूँ, मैंने तो आज तक कभी डाक्टर विनायक सेन का नाम नहीं सुना....उन्होंने किन गरीबों की सेवा की, पता नहीं. जब सेना के एंटीलैंड माइंस को उड़ाया जा रहा था...दक्षिण बस्तर में पुलिस वालों की सामूहिक ह्त्या हुयी तब विनायक सेन कहाँ थे ? स्कूलों और अस्पतालों को बम से उड़ाये जाने पर सेन चुप क्यों रहते हैं ? यह उनका कैसा अहिंसावाद है ? दूर रहकर सेन के पक्ष में बोलने वालों को मैं बस्तर आने का निमंत्रण देता हूँ ...ज़रा हकीकत को पास आकर देखने का कष्ट करें. मैं उन्हें दोष नहीं दे रहा जिन्होंनें भावावेश में आकर सेन के समर्थन में तर्क पेश किये हैं ...वस्तुतः उन्हें हकीकत का पता ही नहीं है ...यद्यपि .....बिना पूरी बात जाने ऐसे संवेदनशील मुद्दे पर कोई टिप्पणी किये जाने से परहेज़ किया जाना चाहिए.
कौशलेन्द्र भाई आप से मै पूरी तरह से सहमत हु
तभी तो मै कह रहा हु
कोई लाख चिल्लाये लेकिन आज की तारीख में हमारी प्रणाली द्वारा अपराधी साबित हुए विनायक हमारे नायक नहीं हो सकते।
धन्यबाद और आभार आपका
हाँ जी
संकल्प एक अनूठा मंत्र है
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